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दिल्ली में कराई जाएगी आर्टिफिशियल बारिश … प्रदूषण पर कृत्रिम बारिश का जुगाड़

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ आर्थिक राजधानी मुंबई में प्रदूषण चरम पर है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए महाराष्ट्र की घाती सरकार भले ही कुछ न करे, लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कृत्रिम बारिश का जुगाड़ ढूंढ़ निकाला है। दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश कराने के लिए कमर कसी है। राजधानी में २० और २१ नवंबर के आस-पास कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। लेकिन इससे पहले सरकार ने पायलट स्टडी कराने का पैâसला किया है, जिसमें करो़ड़ों रुपए खर्च होंगे। सरकार का मानना है कि इससे प्रदूषण कम होगा।
जानकारों की मानें तो दिल्ली की केजरीवाल सरकार कृत्रिम बारिश की दो चरणों में होनेवाली पायलट स्टडी का १३ करोड़ रुपए का खर्च खुद उठाने को तैयार हो गई है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को होनेवाली सुनवाई से पहले अदालत में हलफनामे के जरिए प्रस्ताव दें। मुख्य सचिव को यह भी कहा गया है कि वह अदालत से केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से जरूरी मंजूरी १५ नवंबर तक देने के लिए भी कहें, ताकि २० और २१ नवंबर को कृत्रिम बारिश के पहले चरण की पायलट स्टडी हो सके।
दिल्ली सरकार आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर महत्वाकांक्षी कृत्रिम बारिश प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। २०-२१ नवंबर के आस-पास दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है। इस संबंध में दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना प्लान रखेगी और इसमें केंद्र सरकार से सहयोग दिलाने का अनुरोध करेगी। अगर सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिल जाता है तो आईआईटी कानपुर २०-२१ नवंबर के आस-पास दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने का पहला पायलट प्रोजेक्ट कर सकता है।
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के मुताबिक, आईआईटी कानपुर का कहना है कि इसके लिए कम से कम ४० फीसदी बादल चाहिए। इससे कम बादल पर बारिश नहीं करा सकते हैं। अगर असामान में ४० फीसदी बादल हैं तो वो बारिश करा सकते हैं। आईआईटी कानपुर का अनुमान है कि दिल्ली में २०-२१ नवंबर के आस-पास बादल होने की संभावना है।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
कृत्रिम वर्षा कराने के लिए क्लाउड सीडिंग एक प्रकार से मौसम में बदलाव का वैज्ञानिक तरीका है। इसके तहत आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है। इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और उनसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं। इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं। यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं। हालांकि, यह तभी संभव होता है,

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