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रामनगर रामलीला में आयोजित हुआ दशहरा… काशी नरेश के किले से निकली भव्य शाही यात्रा… उमड़ा हुजूम

उमेश गुप्ता / वाराणसी

काशी में सबसे पहले रामनगर में दशहरा मनाया गया। यहां 23 अक्टूबर को रावण दहन हुआ और दशहरा का मेला सजा। रामनगर में शाही परिवार के पंचांग के अनुसार, 24 को दशमी तिथि नहीं मिलने के कारण 23 अक्टूबर को ही विजयादशमी मनाने का निर्णय लिया गया।
रामनगर की रामलीला में सोमवार को रावण के मृत्यु शैया पर शयन का प्रसंग हुआ। लंका कांड के 99 से लेकर 105 तक के दोहों का सस्वर पाठ किया गया। शुरुआत राम रावण युद्ध से होती है। तमाम प्रयास के बाद भी जब रावण नहीं मरता तो विभीषण राम से रावण की नाभि में बाण मारने को कहते हैं। श्रीराम रावण के नाभि में एक बाण मारते हैं।
रावण के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। श्रीराम विभीषण से कहते हैं कि राजा शोक छोड़ रावण का क्रिया कर्म करो। विभीषण रावण को मुखाग्नि देकर जलाते हैं। वातावरण राममय हो जाता है। यहीं पर आरती के साथ लीला को विराम दिया गया।
श्रीराम की रावण पर विजय के उपलक्ष्य में हर तरफ उत्सव का माहौल दिखा। रामनगर की रामलीला में रावण से युद्ध में श्रीराम की विजय के बाद परंपरानुसार शाही विजय जुलूस निकाला गया। कुंवर अनंत नारायण सिंह की अगुवाई में निकला शाही जुलूस जिस मार्ग से गुजरता जन समुदाय हरहर महादेव का जयघोष करने लगा। समूचा रामनगर इस घोष से गुंजायमान हो रहा था। रामनगर से लंका मैदान तक शाही सवारी की प्रतीक्षा कर रहे लोगों का अभिवादन हाथी पर सवार कुंवर ने हाथ जोड़ कर किया। इससे पूर्व रामनगर किले में विजय दिवस समारोह ठीक दोपहर दो बजकर 41 मिनट पर शुरू हुआ। पूजन के बाद कुंवर बाहर निकले यहां तैनात 36वीं वाहिनी पीएसी के जवानों ने उन्हें सलामी दी। किले की शाही बैंड पार्टी ने सलामी धुन बजाई।
कुंवर ने शस्त्र पूजन किया। ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच कुंवर ने विजय जुलूस में प्रदर्शित किए जा रहे अस्त्र-शस्त्र, हाथी-घोड़ों आदि की सभी की पूजा की, फिर पालकी में सवार होकर किला परिसर स्थित काली मंदिर में पूजन के लिए गए। शाम चार बजकर 37 मिनट पर कुंवर का शाही काफिला किले से बाहर निकला। विजय जुलूस में सबसे आगे बनारस स्टेट का झंडा लिए हाथी पर सवार स्टेट के मुसाहिब थे। उनके पीछे दो हाथियों पर काशीराज के प्रतिनिधि थे। रामनगर से लंका मैदान के लगभग तीन किमी रास्ते के दोनों ओर शाही विजय जुलूस देखने के लिए दोपहर बाद से ही लोग डटे थे। बटाऊबीर पहुंच कर कुंवर ने शमी वृक्ष का पूजन कर शांति के प्रतीक कबूतर छोड़े। शाही काफिला लंका मैदान गया, जहां संध्या पूजन के बाद कुंवर किले में लौट गए।
सायंकाल विजय यात्रा निकाले जाने के बाद सोमवार को देर रात रामनगर में रावण दहन हुआ। शाही विजय जुलूस देखने के बाद चार घंटे के अंतराल को मेला प्रेमियों ने प्रतीक्षा में व्यतीत किया। मुहूर्त के अनुसार रात्रि दस बजे के बाद रावण दहन शुरू हुआ। सैकड़ों की संख्या में लोग रावण दहन देखने के लिए लंका मैदान में डंटे रहे। समूचे रामनगर के नगरी इलाके में मेले के रंग बिखर रखे थे।

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