मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाकिस्सों का सबक : पत्रिका की कामयाबी

किस्सों का सबक : पत्रिका की कामयाबी

डॉ. दीनदयाल मुरारका

जॉनसन एक मिल मजदूर के पुत्र थे। उनकी मां लोगों के कपड़े सिलने का काम करती थी। जॉनसन की हार्दिक इच्छा थी कि वह अप्रâीकी-अमेरिकी समुदाय के लिए एक पत्रिका निकाले। उन्होंने इसके लिए लोगों से मदद मांगी लेकिन निराशा ही हाथ लगी। अंत में उनकी मां ने कहा, बेटा मैंने लोगों के कपड़े सिलाई करके जो फर्नीचर बनवाया है, तुम उसे गिरवी रख दो और उससे जो पैसे मिले तुम उसका इस्तेमाल कर सकते हो। उसके बाद मां ने ५०० डॉलर का कर्ज लेकर भी उन्हें दिया। पत्रिका का ग्राहक बनाने के लिए शुरुआत में जॉनसन ने २०,००० ग्राहक बनाए। नीग्रो डाइजेस्ट नाम की पत्रिका में अप्रâीकी एवं अमेरिकीयों के रुचि की खबरें और लेख छपने के बाद जॉनसन ने अपने मित्रों के साथ विचार किया कि अब इसको वैâसा बेचा जाए? बहुत सोचने के बाद उन्होंने मित्रों से कहा, तुम लोग हर दुकान पर जाओ, जहां पर नीग्रो डाइजेस्ट ना दिखे वहां इसकी मांग करो। बढ़ती मांग को देखते हुए वितरकों को यह पत्रिका रखनी ही पड़ी। सभी मित्रों को जॉनसन की योजना बहुत पसंद आई और उन्होंने इसे अपनी स्वीकृति दे दी। उनमें से एक मित्र ने कहा, इससे हमें क्या फायदा होगा? जॉनसन ने कहा, पत्रिका को कामयाब होने दो। फिर हम सब का फायदा ही फायदा है। यह योजना काम कर गई और वितरक पत्रिका को बेचने में अपनी रुचि दिखाने लगे। एक साल बाद पत्रिका की ५०,००० प्रतियां लगातार हर महीने बिकने लगी। फिर बाद में जॉनसन सफलता की ऊंचाइयों को छूते ही चले गए। जॉनसन का जीवन इस बात का गवाह है कि छोटी सी शुरुआत से भी इंसान बड़ी सफलता हासिल कर सकता है। बशर्ते उसमें बुद्धि हो, मेहनत करने की इच्छा हो और कभी न हार मानने का संकल्प हो।

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