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मुंबई में घटे एचआईवी के मरीज… पांच सालों में पॉजिटिव मिलीं १,५७६ गर्भवती महिलाएं

– ७५ फीसदी मामले १४ से ४९ साल के बीच

– असुरक्षित यौन संबंध से ९६ फीसदी हुए संक्रमित

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई

मुंबई में एचआईवी को लेकर चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रमों का सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। इन प्रयासों के कारण मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसायटी से मिले आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच साल में मुंबई में एचआईवी के मामलों में ७५ फीसदी से ज्यादा कमी दर्ज की गई है। गर्भवती महिलाओं में भी संक्रमण के मामले कम हुए हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि असुरक्षित यौन संबंध के कारण ९६ फीसदी लोग एचआईवी के शिकार हुए हैं, जिसमें ३३ फीसदी महिलाएं हैं। इसके साथ ही ७५ फीसदी मामले १४ से ४९ की उम्र वालों में देखे गए हैं, वहीं पिछले पांच साल में १,५७६ गर्भवती महिलाएं एचआईवी से संक्रमित पाई गई हैं।
मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसायटी से मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष २०१९-२० में महानगर में कुल ४,४७३ नए एचआईवी के मरीज पंजीकृत हुए थे, जबकि २०२३-२४ में यह आंकड़ा घटकर १,९०९ रह गया, वहीं साल २०२०-२१ में २,०६३, साल २०२१-२२ में ३,०८७ और २०२२-२३ में ३,३७२ एचआईवी के मामले मिले थे। एमडैक्स के डॉ. विजयकुमार करंजकर ने कहा कि पिछले दो दशकों में मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसायटी के लगातार प्रयासों से सफलता मिल रही है। इस कारण मुंबई में नए एचआईवी संक्रमणों में उल्लेखनीय गिरावट देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि एआरटी सेंटर, जांच के लिए उपलब्ध संसाधनों और बीमारी के प्रति लोगों में बढ़ती जागरूकता के चलते मामलों में कमी दर्ज हुई है। हालांकि, कोरोना महामारी के दौरान टेस्टिंग प्रभावित हुई थी। इसलिए नए मामले कम मिले थे। बीते दो सालों से टेस्टिंग सामान्य रही, लेकिन मामले कम मिले हैं।
वर्तमान में एचआईवी एड्स से पीड़ित ३९,९२२ मरीज आजीवन एआरटी पर हैं। इनमें से ३३,५५४ यानी ८२ फीसदी मरीज पहली पंक्ति के आहार पर, ३,७९२ यानी नौ फीसदी मरीज दूसरी पंक्ति के आहार पर, ५१४ यानी एक फीसदी मरीज तीसरी पंक्ति पर २,४५४ यानी छह फीसदी मरीज वैकल्पिक पहली पंक्ति और ६०८ यानी दो फीसदी मरीज वैकल्पिक दूसरी पंक्ति की दवाएं प्राप्त कर रहे हैं। इसके साथ ही साल २०२२-२३ में उपचार के दौरान पीएल एचआईवी संक्रमित ३५,१०६ लोगों के बीच वायरल लोड का परीक्षण किया गया, जिसमें ३४,०९४ यानी ९७.१ फीसदी मरीज वायरल से दबे हुए पाए गए।
असुरक्षित यौन संबंध सबसे बड़ा कारण
आंकड़ों पर नजर डालें तो आज भी महानगर में एचआईवी का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित यौन संबंध है। एमडैक्स ने बताया कि इस वर्ष पंजीकृत हुए कुल १,९०९ मामलों में से ९५ प्रतिशत लोग असुरक्षित यौन संबंध के कारण एचआईवी के शिकार हुए हैं। संक्रमित माताओं के जरिए उनके बच्चों में एड्स फैलने के तीन प्रतिशत मामले थे।
गर्भवती महिलाओं में घट रहा एचआईवी
एड्स के प्रति चलाई जा रही जनजागृति का असर गर्भवती महिलाओं पर भी हो रहा है। यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं के एचआईवी संक्रमित होने का प्रमाण कम हो गया है। वर्ष २०१९-२० में गर्भवती महिलाओं के एचआईवी संक्रमित होने का प्रमाण १४४ फीसद था, जो वर्ष २०२३-२४ में घटकर ४५ फीसद से भी कम हो गया है। जानकारी के अनुसार, वर्ष २०१९-२० में ३९९, साल २०२०-२१ में २६६, साल २०२१-२२ में ३२८, साल २०२२-२३ में ३५३ और साल २०२३-२४ में २३० गर्भवती महिलाएं एचआईवी की शिकार हुई हैं।
`जिंदगी’ ऐप सिखा रही जीना
एमडैक्स के डॉ. विजयकुमार करंजकर ने कहा कि अक्सर एचआईवी से संक्रमित हो चुके मरीजों के मन में कई तरह की शंकाएं रहती हैं। खांसी, टीबी जैसी बीमारियों का शिकार होने के बाद उनके मन में कई तरह के सवाल उठते रहते हैं कि क्या वे डॉक्टर से परामर्श लें या नहीं। बीमारी के बाद आगे उनका क्या होगा। एआरटी सेंटर में जाना चाहिए या नहीं, सीडी और वायरल को अपलोड करें कि नहीं, जैसे सवालों की झड़ी उनके दिमाग में गूंजती रहती है। उनकी इस समस्या का समाधान करते हुए जिंदगी ऐप को शुरू किया गया है, जो एचआईवी संक्रमित मरीजों को जीने की आस दे रहा है।

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