हमने उनको अपना जाना, हम कितने दीवाने हैं
फूलों का भ्रम पाल रखा है, कॉंटों के ज़माने हैं।
नया इलाज रास न आया, ज़ख़्म सदियों पुराने हैं
उलफत में ये कैसी आफ़त, तेवर अभी आज़माने है।
मोहब्बत पर पहरे की बातें, ये तो कोरे बहाने
जिनको मिलने आना होता, चले आते सीना ताने हैं।
गीत, ग़ज़ल, मेरे लिखे नग़मे, तूम्ही को सुनाने हैं
लिख गया हूं धुन में तेरी, तुम्हीं ने आकर गाने हैं।
दिख रहे जो ‘दाग वफ़ा के’ बेवफ़ा तेरे तानें हैं
निगाहें समन्दर में तेरी, हरफ़ मेरे बह जाने है।
प्यार हमारा एक हक़ीक़त, बाकी सब फ़साने हैं
लौट के आजा ओ बेदर्दी, हम नहीं बेगाने हैं।
कितने पल मिलन के गुज़रे, कितने ही गुम जानें हैं
ठहर गये जो ख़ुश्क आंखों में, अश्को के पैमाने है।
* त्रिलोचन सिंह अरोरा ✍️*…..