तालीम (लघु कथा)

किताब कलम की उम्र के हाथों वाले दोनों भाइयों ने कुछ दिनों पहले ही कालोनी के बाहर फुटपाथ पर सब्जी बेचनी शुरू की थी।
अभी दुकान लगाई ही थी कि एक अधेड़ महिला आई और पूछने लगी, “ये प्याज कैसी दी?”
“साठ रुपए किलो” बड़े भाई ने कहा।
“और ये आलू…?” महिला ने पूछा।
“पैंतालीस रुपए” बड़े भाई ने जवाब दिया।
“अच्छा ये बताओ भिंडी और बैंगन …?”
महिला को गुस्से में घूरते हुए बड़ी फुर्ती से छोटे भाई ने कहा, “भिंडी सौ और बैंगन अस्सी…काकी कहो तो बाकी सब सब्जी का भी दाम बता दूँ ?”
महिला ने विस्मयी दृष्टि से छोटे को देखा और बोली, “तुम तो बड़े होशियार हो और इतनी सी उम्र में गजब की दुकानदारी का हुनर है।”
दूसरी महिला की सब्जी तौलते हुए छोटा भाई कहता है, “काकी! पापी पेट का सवाल है। सिर पर मां बाप साया न हो तो ये कठोर, निर्मम और स्वार्थी दुनिया मासूमियत को गिद्ध की तरह नोच-नोच निगल जाती है और यही दुनिया होशियारी एवं हुनर की कड़वी तालीम सिखा देती है।”

डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया,
नवी मुंबई।

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