मुख्यपृष्ठसमाज-संस्कृतिदेश में स्थायी नौकरी और पेंशन से खुशहाली आएगी‌

देश में स्थायी नौकरी और पेंशन से खुशहाली आएगी‌

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने बेरोजगारी को लेकर चौकाने वाले खुलासे किए है। आंकड़ों से ज्ञात होता है कि देश में बेरोजगारी की वजह से साल 2018 में औसतन 35लोगों ने रोजाना आत्महत्या की है।अर्थात हर दो घंटे में लगभग तीन बेरोजगारों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ।वहीं 2019 में हर घंटे एक बेरोजगार, गरीब या दिवालिया ने आत्महत्या की। वहीं लगभग 25 हजार लोग 2018 से 2020 के बीच बेरोजगार या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। अब डर यह लग रहा है कि जो अभी बेरोजगार हैं कहीं वे भी ऐसा निर्णय न ले लें। वास्तव में जिनके पास रोजगार है वह स्थायी नहीं है अर्थात वे कान्ट्रेक्ट लेबर हैं। स्थायीत्व न होने के कारण वे सभी टेंशन में हैं। जबकि देश का हर नागरिक में सम्मान के साथ राष्ट्र की सेवा करने की इच्छा है।लेकिन जब से अग्निवीर योजना को अपनाया गया है तब से तो पूरा देश ही हदस गया है। इस योजना से हर किसी के ज़हन में डर यह लग रहा है कहीं इन अग्निवीरों की तरह देश के प्रति सेवा और समर्पण के बावजूद पाँच वर्ष के बाद घर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। वैसे एक सैनिक की तरह विदेशों में जाकर अच्छा पैकेज न स्वीकार करने का मूल उद्देश्य देशभक्ति और देश प्रेम है,न कि पैसा कमाना। क्योंकि उनकी भावना कुछ इस तरह की है-मेरी मिट्टी का वो रंग कभी ना फीका होगा,इस धरा पर हर ख्वाब मेरा सच्चा होगा। हमेशा इसी माटी की सौंधी खुशबू में बसेंगे,मेरा देश,मेरी मिट्टी,मेरा दिल यही रहेगा।

लेकिन जिस प्रकार से केवल 6 माह के प्रशिक्षण से सैनिक बनाया गया।उससे तो प्रबुद्ध वर्ग यह सोचने को विवश है कि आखिर कैसे बिना ऑपरेशन में भाग लिए देश की रक्षा की जिम्मेदारी अग्निवीरों को सौंपी गई है? आखिर यह देश की रक्षा का मामला है।इसलिए वर्तमान में आवश्यकता इस बात की है कि इस योजना पर बहुत ही गंभीरता से विचार किया जाये क्योंकि यह बहुत ही संवेदनशील विषय है।वहीं सरकारी नौकरी की स्थिति पर भी गंभीरता पूर्वक विचार करने की महती आवश्यकता है।नौकरी करने वालों के जहन में भय के कई कारण हैं जैसे मई, 2022 की एक घटना है हरियाणा में 2,212 कान्ट्रेक्ट पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाएं अचानक से समाप्त कर दी गई।फिर क्या था वे लोग सड़क पर उतर आए, उनमें नर्स, सफाईकर्मी, सुरक्षा गार्ड और पैरामेडिकल स्टाफ भी शामिल था। इन सभी स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड महामारी के दौरान काम पर रखा गया था, लेकिन बाद में उनकी जरूरत महसूस नहीं गई और उन्हें जैसे ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ इस तर्ज पर घर बैठने को मजबूर कर दिया गया। शॉर्ट नोटिस पर लोगों को रखना और उन्हें हटाना हमारी कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह बाहर से आयात किया गया कल्चर है। इस आयातित आधुनिक कल्चर के कारण असम में 8,300 पंचायत और ग्रामीण विकास कान्ट्रेक्ट लेबर ने फरवरी 2022 में विरोध प्रदर्शन किया। वे 12-14 वर्षों से कान्ट्रेक्ट पर थे और उन्हें बोनस, भत्ते, पेंशन या वेतन संशोधन की कोई सुविधा प्राप्त नहीं थी।ठीक इसी तरह अप्रैल, 2022 में छत्तीसगढ़ के राज्य बिजली विभाग के 200 कान्ट्रेक्ट लेबर पर पानी बरसाया गया और फिर उन्हें विरोध प्रदर्शन के चलते अरेस्ट कर लिया गया। एक जागरूक नागरिक के लिए ऐसी सूरत का सामना करना कितना त्रासद है, बताने की आवश्यकता नहीं है।

दरअसल, इन सभी मामलों में समस्या दोहरी है। पहली बात तो यह कि खाली पदों को जिस गति से भरा जाना चाहिए उस गति से भरा नहीं जा रहा है। गौरतलब हो कि वर्ष 2021के जुलाई माह में सभी स्तरों पर 60 लाख से अधिक रिक्तियां थी। इनमें से 9,10,513 रिक्तियां केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में थी, जबकि पीएसयू बैंकों में ही दो लाख रिक्तियां होने का अनुमान था। इसके अलावा राज्य पुलिस में 5,31,737 से भी अधिक रिक्तियां और प्राथमिक विद्यालयों में 837,592 पद खाली होने का अनुमान था। डेढ़ वर्ष में मिशन-मोड में 10 लाख लोगों की भर्ती की चर्चा थी। रही बात रिक्तियां भरने की तो यह जहां भरी भी जा रही हैं, वे ज्यादातर कान्ट्रेक्ट के आधार पर । 2014 में 43 फीसदी सरकारी कर्मचारियों की नौकरी अस्थायी या कान्ट्रेक्ट पर थी। 2018 तक इस श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की संख्या 59 फीसदी तक पहुंच गई। मार्च 2020 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) के लिए कान्ट्रेक्ट जिसे हम अस्थायी कहते हैं ऐसे कर्मचारियों का आंकड़ा 498,807 तक पहुंच गया। यह बढ़त 19 से बढ़कर बढ़कर 37 फीसदी हुई। फलस्वरूप इस दौरान स्थायी कर्मचारियों की हिस्सेदारी 25 फीसदी गिरी।वहीं वर्ष 2020 में, जब महामारी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई तो उत्तर प्रदेश में ग्रुप बी और सी कर्मचारियों के लिए भर्ती में संशोधन करने की डिमांड हुई। पांच साल के लिए आश्चर्य जनक ढंग से कान्ट्रेक्ट एम्पालाइमेंट बढ़ाने की इस पहल में कर्मचारियों को भत्ते और विशिष्ट लाभ की पेशकश नहीं की गई। 2020 में उत्तर प्रदेश में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 9 लाख थी। इस व्यवस्था के तहत पाँच साल के बाद परमानेंट करने की भी बात कही गई। जिसमें कठोर मूल्यांकन प्रक्रिया की धौंस भी दिखी।जैसे जो इस प्रक्रिया में पास नहीं होंगे, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। मृत कर्मचारी के किसी भी आश्रित को यदि ऐसे पदों पर नियुक्त किया जाता है, तो उसे भी इसी तरह के मूल्यांकन से गुजरना होगा।वास्तव में हमें कान्ट्रेक्ट इम्पालायमेंट के विस्तार करने के बजाय पब्लिक सर्विस को बढ़ावा देना चाहिए। विगत कई वर्षों से हमारा इन्वेस्टमेंट नाममात्र का है। कोविड संकट के दौरान यह साफ दिखा कि यदि महामारी को छोड़ दें तो, हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के पास सामान्य परिस्थितियों में भी नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने की क्षमता का अभाव सा नजर आता है।पब्लिक सर्विसेज के विस्तार से कुशल श्रम के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन भी होगा, जो हमें सामाजिक स्टेबिलिटी प्रदान करेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने पर जोर देने से सोसल प्रापर्टी का निर्माण होगा। इससे आयुष्मान भारत जैसे बीमा-आधारित मॉडल के भी कारगर होने में सफलता मिलेगी। इस तरह के खर्च से अंततः कन्ज्यूमर डिमांड में वृद्धि के साथ कई और ठोस प्रभाव सामने आएंगे।ठीक ऐसे ही अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में रोजगार सृजन की महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में भी अपशिष्ट जल उपचार क्षमता के विस्तार की महत्वपूर्ण गुंजाइश है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और हरित गतिशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण जनशक्ति की आवश्यकता होगी, जिससे हरित रोजगार पैदा होगा। इसके अलावा, हमें पर्माकल्चर अर्थात एक तरीके से देखा जाए तो भारत की एकीकृत कृषि प्रणाली से मिलता जुलता है,जिसमें खेती के साथ-साथ बागवानी ,वानिकी,पशुपालन,मुर्गी पालन,मछली पालन,खाद निर्माण,पशु चारा उत्पादन, सिंचाई आदि का काम एक स्थायी जमीन पर होता है।इसे परमानेंट एग्रीकल्चर अर्थात पर्माकल्चर भी कहते हैं। बागवानी और नर्सरी प्रबंधन में महत्वपूर्ण रोजगार क्षमता के साथ शहरी खेती को प्रोत्साहित करना जारी रखना चाहिए। कुशल सिविल सेवा को यह बात स्वीकार करनी होगी कि सरकारी नौकरियों में कार्यरत लोग एक हिसाब से भी अधिक इन्कमटैक्स भर रहे हैं फिर भी पेंशन मिलने की कोई उम्मीद न होने की वजह से वे दुखी हैं। हमें टैलंट को सरकार की ओर आकर्षित करने की जरूरत है। पेंशन और लाभों की लागत कम करने या उससे बचने के बजाय इसे अपेक्षित शक्ल चाहिए। हमारी सार्वजनिक सेवाओं में राष्ट्र निर्माता शिक्षक हों या न्याय की खातिर अधिवक्ता बने अधिवक्ता हो या तकनीकी विकास के खातिर इंजीनियर बने इंजीनियरिंग करने वाले युवा हों या लोगों के प्राण बचाने हेतु चिकित्सक हों या फिर पैरामेडिकल स्टाफ और सही आकडों की प्रस्तुति करने वाले डेटा क्लर्क। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा समर्थित सुधार हमारा प्रारंभिक कदम होना चाहिए। यह कुशल सिविल सेवा के लिए क्षमता निर्माण का समय है। कभी ‘जय जवान, जय किसान ’ ,जय विज्ञान हमारा प्रेरक आदर्श था।वर्तमान में इसकी महती आवश्यकता है।फलस्वरूप देश में जनसंख्या नियंत्रण के साथ सामाजिक समानता ,उच्च शिक्षा और तात्कालिक विभिन्न समस्याओं का हल चुटकी बजाते ही मिल जाएगा।आज मुझे जिगर मुरादाबादी याद आ रहे -ये कह कह के हम दिल को बहला रहे है वो अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं। मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं।

चंद्रवीर बंशीधर यादव
(लेखक शिक्षाविद् एवं सामाजिक चिंतक हैं।)

 

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