नदियां बहती ही नहीं गाती भी हैं,
अवतरित होती, अंगना खेलती,तरुणाई में आती हैं।
नदियां बसेरे, गांव, नगर,महा नगर बसाती हैं,
कृषी, फसलें,धन धान्य,वन , उपवन देती हैं
दुग्ध,दधी, नवनीत देकर अमृत बरसाती हैं।
नदियां केवल बहती नहीं, गीत भी गाती हैं,
गीत जीवन के, संस्कारों के, सभ्यता,रीती रिवाजों के गाती हैं।
कभी पुरातन गाती हैं,कभी नूतन गाती हैं,
इतिहास बनाती और उसे सुनाती,दोहराती हैं।
सरिताओ के तट पर रचे गए वेद,पुराण,पावन ग्रंथ
लगता कुंभ,अर्ध कुंभ, मणिकर्णिका घाट बनाती हैं।
देव नगरी बनती कभी प्रभु की क्रीड़ा स्थली बनती हैं,
कबीर, तुलसी की सृजन स्थली भी बनतीं हैं।
यहां ज्ञान है, अध्यात्म है, सृजन है ,उत्थान है,
राग है, रागिनी है,लय ताल, झंकार है।
नदियां तप है, कर्म है भक्ति है,श्री शोभा है,
पाप नाशनी,मुक्ती दायिनी,मोक्ष दायिनी हैं ।
नदियां बहती ही नहीं गुनगुनाती भी हैं।
नदियां रणक्षेत्र हैं,वीर रस हैं, विरहा हैं
शांत रस हैं तो वैराग्य भी लाती हैं।
नदियां देश का जीवन तंत्र हैं,विकास, स्नायु तंत्र हैं
नदियां देती ही देती हैं कुछ नहीं लेती,
इन्हें गंदगी से मुक्त करो,जीवन दो, जीने दो।
नदियां बहती ही नहीं, गाती हैं, गुनगुनाती हैं।
बेला विरदी।