सरहद पर बैठा जवान सोंच रहा
अगर मैं दुश्मन को गोली मारुं वो तो मर जायेगा
उसके घर वालों पर हादसा छा जायेगा
जब मैं दुश्मन को देखूं उससे बात करूँ
मुझे लगे वो तो मेरी ही ज़ुबाँ बोलता है
फर्क बस इतना है वो उर्दू के लफ़ज़ खोलता है
उर्दू तो हमारे यहाँ भी चलती है
शक्ल तो हूबहू मिलती है
बस वर्दी अलग सी दिखती है
क्या करूँ इसको मारुं या छोडूं
हो सकता इसका रिश्तेदार हमारे यहाँ पलता होगा
वो तो भारतीय कहलाता होगा
यहाँ वहां के रास्ते और नदियां तो मेल खाते हैं
फिर दिल मिलने में इतनी देर क्यूँ लगाते हैं
हम दोनों देख रहे एक दूसरे को खड़े तैयार
समझ नहीं आता मारुं या छोडूं
इंसान दरार खींच देते हैं
बस हो जाते हैं एक दूसरे के दुश्मन तैयार
अन्नपूर्णा कौल, नोएडा