दिल के एहसासों की भाषा
राष्ट्रभाषा हिंदी है,
अपनेपन की परिभाषा लिए
माँ सरस्वती का वरदान जिस पर,
हुआ जिसका मात्राओं से श्रृंगार अनुपम,
माँ भारती के आँचल में पली बढ़ी,
फिर भी अपने जनमानस में रह कर,
अपना ही अस्तित्व ढूँढ रही,
जिसने दी अपनी पहचान हमें
उसको ही हम भूल रहे,
और समय के साथ जाने
खुद को क्यूँ है बदल रहे,
परभाषा प्रेम के चक्कर में
हिन्दी से लज्जा महसूस कर रहे,
बेशक भाषा होती माध्यम
इक दूजे से जुड़ने का,
लेकिन हिंदी है करवाती
माँ की बोली का एहसास हमें,
अपार शब्दों की है सम्पदा है हिन्दी,
जन्मदात्री भी है कितनों की,
सब बोली जो समाहित कर ले
सरलता की है शक्ति इसमें
माना कि बहु भाषा का ज्ञान
दिलाता जीवन में मान सम्मान,
पर मत भूलो मातृभाषा से ही
फैलता समस्त जगत में
प्रत्येक देश का यशगान !
मुनीष भाटिया
कुरुक्षेत्र- हरियाणा