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११वीं में १२ राउंड चली एडमिशन प्रक्रियाएं…फिर भी खाली रह गईं १.३४ लाख सीटें… गहन ऑडिट की मांग पर बढ़ी मजबूरी 

सामना संवाददाता / मुंबई

मुंबई समेत एमएमआर में इस साल १०वीं पास हुए छात्रों ने एडमिशन प्रक्रिया में खास रुचि नहीं दिखाई है। यह इस जानकारी से स्पष्ट हो रहा है कि ११वीं एडमिशन को लेकर चलाई गई १२ राउंड प्रक्रियाओं के बावजूद १.३४ लाख सीटें खाली रह गई हैं। बड़े पैमाने पर सीट रिक्तियों ने शिक्षाविदों और शैक्षिक विशेषज्ञों को प्रवेश प्रक्रिया की गहन ऑडिट की मांग करने पर मजबूर कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि इस साल ११वीं में एडमिशन की प्रक्रिया के तहत १२वां राउंड पांच अक्टूबर को खत्म हो गया था। इसके बाद २६ अक्टूबर की शाम तक एमएमआर रीजन में आने वाले १,०५० जूनियर कॉलेजों में कुल ४०८,४३५ प्रवेश क्षमता में से १,३४,५३७ यानी ३२.९४ प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं। पंजीकृत ३००,३९३ छात्रों में से २७३,८९८ छात्रों को प्रवेश मिला।
स्कूल शिक्षा के उपनिदेशक कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, २६,४९५ छात्र अभी भी ‘नॉट एडमिटेड’ की श्रेणी में आते हैं। मुंबई समेत एमएमआर रीजन में १.३४ लाख सीटों के खाली रहने पर अभिभावकों के साथ ही शिक्षाविदों ने गहन चिंता व्यक्त की है। उन्होंने सवाल किया है कि इतनी सारी सीटों के खाली होने के पीछे क्या शिक्षा विभाग को इस पर अध्ययन नहीं करना चाहिए। दूसरी तरफ कुछ अभिभावकों ने सीट आवंटन प्रक्रिया पर निराशा व्यक्त की।
एक अभिभावक ने कहा कि हमें भले ही स्पेशल राउंड तीन में अपनी पसंद का कॉलेज मिल गया, लेकिन जब हमने सीट उपलब्धता के बारे में पूछताछ की, तो पाया कि सीटें खाली होने के बाद भी बच्चे को एडमिशन नहीं दिया जा रहा था।
शिक्षा विभाग के दृष्टिकोण की आलोचना
पुणे स्थित शैक्षणिक संगठन करेक्टिव मूवमेंट ने पूरे महाराष्ट्र में ११वीं एडमिशन में लगातार रिक्तियों पर प्रकाश डाला है। २०२३-२४ शैक्षणिक वर्ष के लिए जारी रिपोर्ट अमरावती, मुंबई, नागपुर, नासिक और पुणे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उल्लेखनीय चुनौतियों पर प्रकाश डाल रही है। करेक्टिव मूवमेंट की अध्यक्ष वैशाली बाफना ने रिक्तियों के बावजूद नए संस्थानों को मंजूरी देने के लिए शिक्षा विभाग के दृष्टिकोण की आलोचना की। उनके मुताबिक, इस वर्ष विभाग ने एमएमआर और अतिरिक्त प्रभागों में २४ नए कॉलेजों को मंजूरी दी, जिससे ७,९२० सीटें बढ़ गर्इं। पिछले कुछ वर्षों के रुझान से पता चलता है कि नए कॉलेजों की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे में सरकार को प्रवेश प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना चाहिए।

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