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संत से सेना में शामिल होकर राष्ट्रभक्त और फिर ईश्वर भक्त बने फौजी बाबा

दीपक तिवारी

संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं, जिनका झुकाव ईश्वर और राष्ट्रभक्ति की ओर पूर्ण समर्पण के साथ होता है। ऐसे ही विरली और अद्भुत शख्सियत में शुमार हैं त्याग मूर्ति कर्मयोगी 1008 श्री ब्रह्मऋषि संत श्री फौजी बाबा महाराज। जिनका झुकाव बचपन से ही आध्यात्म में रहा और सेना के माध्यम से राष्ट्रभक्ति करने के बाद फिर दीक्षा लेकर अध्यात्म मार्ग की ओर घर द्वार छोड़कर चल दिए।
श्री दादाजी मनोकामना पूर्ण सिद्ध श्री हनुमान मंदिर रंगई रेलवे पुल विदिशा पहुंचे श्री फौजी बाबा जी महाराज के दर्शन करने के बाद उनकी रोचक कहानी जानने का अवसर मिला। प्रस्तुत है दोपहर का सामना के संवाददाता दीपक तिवारी की रिपोर्ट।

बचपन से ही संतों के प्रति झुकाव रहा
फौजी बाबा महाराज के शिष्य महामंडलेश्वर श्री रामकृपाल दास त्यागी जी फलाहारी ने दोपहर का सामना को बताया कि महाराज जी का जन्म 1931 को इंदौर में हुआ। उनके पिताजी का संतों के साथ अनुराग रहा। जिससे उनके इकलौते बेटे फौजी बाबा 1956 में 25 वर्ष की आयु में काशी चले गए और वहां दीक्षा ग्रहण की। परिवार में फौजी बाबा अकेले थे, उनके कोई भाई नहीं था। इसलिए 4 साल बाद उनके पिताजी काशी पहुंचे और गुरुजी से निवेदन किया कि मेरे पुत्र के संत बन जाने के बाद वंश कैसे बढ़ेगा? इसलिए गुरुजी ने फौजी बाबा को विवाह करने की आज्ञा दी और पिताजी के साथ इंदौर जाने को कहा। काशी से लौटने के कुछ समय बाद महाराज जी के पिताजी ने फौजी बाबा की शादी की।

चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ाई लड़ी
शादी के बाद फौजी बाबा भारतीय सेना में भर्ती हो गए। सेना के माध्यम से देशसेवा के दौरान फौजी बाबा ने 1962 में चीन के विरुद्ध और 1965 में पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध लड़ा।
पाकिस्तान के युद्ध में फौजी बाबा घायल हो गए थे, पाकिस्तान ने उन्हें बंदी बना लिया और जेल में डाल दिया था। पाकिस्तानी जेल में 9 माह 18 दिन रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। पाकिस्तान की जेल से छूटने के बाद भारतीय सेना ने फौजी बाबा को रिटायर्ड कर दिया। इसके बाद उन्होंने सिविल नौकरी ज्वाइन की।

रिटायरमेंट के बाद फिर संत परंपरा में लौटे फौजी बाबा
तीन पेंशन मिलने के बाद बाबा पुनः संत परंपरा में आए और दीक्षा ग्रहण की। इस समय महाराज जी की आयु 93 साल हो चुकी है। इस बार 16 अक्टूबर को उनका वार्षिक जन्मोत्सव मनाया गया। फौजी बाबा को पेंशन के रूप में 50 हजार रुपए से ज्यादा राशि हर महीने मिलती है, जिसे वे संत सेवा में लगाते हैं।

देशभर में 11 शहरों में आश्रम बनाए
फौजी बाबा ने देश में अब तक 11 आश्रमों की स्थापना की है। आश्रमों में महू इंदौर, गोवर्धन, भरतपुर, सोनकच्छ, कोटा, हाथरस, झालरापाटन, फतेहपुर सीकरी आदि शामिल हैं और वर्तमान में गुवाहाटी में आश्रम बन रहा है।

एकजुट होकर सनातन धर्म को सशक्त बनाएं
महामंडलेश्वर श्री राम कृपाल दास त्यागी महाराज ने हिंदुओं से अपील करते हुए कहा कि सनातन संस्कृति का विश्व में परचम लहराने के लिए हमें एकजुट रहना बहुत जरूरी है। क्योंकि मुगलों और अंग्रेजों ने हमें बांटकर हम पर राज किया है। सनातन धर्म अनादि और आदि है, जिसका कभी अंत नहीं हो सकता। मुगलों ने 800 साल और अंग्रेजों ने ढाई सौ साल तक राज किया लेकिन हमारी सनातन संस्कृति को नष्ट नहीं कर पाए। पर हिंदुओं को बांटकर उन्होंने राज किया। और आज की राजनीति भी हमें धर्म, पंथ, समाज और जातियों में बांट रही है। इसलिए हमें एक होकर सनातन धर्म का परचम पूरे विश्व में लहराकर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना है। समृद्धिशाली राष्ट्र का निर्माण कर और एकजुट होकर हम सनातन को सशक्त बना सकते हैं।

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