हर रोज ४ लाख लोग होंगे प्रभावित
अपनी डिस्पेंसरी में ज्यादातर डॉक्टर सस्ती जेनेरिक दवाएं रखते हैं, ताकि गरीब मरीजों पर इलाज का ज्यादा भार न पड़ सके। अब केमिस्ट असोसिएशन की शिकायत पर ‘घाती’ सरकार ने एफडीए को इन पर नजर रखने का आदेश दिया है।
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
राज्य के बजट में जनता को झुनझुना थमाने वाली ‘घाती’ सरकार उन्हें छलने से बाज नहीं आ रही है। इसी क्रम में अब आज से २५ हजार से अधिक डॉक्टर ‘एफडीए’ (फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रिेशन के रडार पर आ गए हैं। एफडीए की तरफ से इन डॉक्टरों के लिए जारी फरमान में साफ शब्दों में कहा गया है कि वे जरूरत से ज्यादा दवाइयां न रखें, अन्यथा उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। दूसरी तरफ संभावना जताई जा रही है कि इससे रोजाना करीब ४ लाख गरीब मरीजों का इलाज प्रभावित होगा। फिलहाल इस फरमान को लेकर विरोध शुरू हो गया है। साथ ही आरोप लग रहा है कि यह कार्रवाई साजिश के तहत की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र राज्य की आबादी १३ करोड़ से ज्यादा है। इसमें कुछ शहरी क्षेत्रों, जबकि ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज निजी डिस्पेंसरी चलानेवाले डॉक्टरों पर निर्भर रहते हैं। अपनी डिस्पेंसरी में ज्यादातर डॉक्टर सस्ती जेनेरिक दवाएं रखते हैं, ताकि गरीब मरीजों पर इलाज का ज्यादा भार न पड़ सके। हालांकि, बीते दिनों केमिस्ट असोसिएशन की शिकायत पर ‘घाती’ सरकार ने एफडीए को इन पर नजर रखने का आदेश दिया है। इसके तहत आज बुधवार से राज्य के २५ हजार, जबकि एमएमआर में चार से पांच हजार से अधिक डॉक्टरों के पास ड्रग्स इंस्पेक्टर पहुंचेंगे और उनकी डिस्पेंसरी में दवाओं की मात्रा की जांच करेंगे।
गरीबों पर महंगे इलाज की मार! … -इलाज का खर्च बढ़ जाएगा ५ गुना
राज्य में रहनेवाले गरीबों पर अब महंगे इलाज की मार पड़नेवाली है। छोटी बस्ती में निजी डिस्पेंसरी चलानेवाले डॉक्टरों पर एफडीए की गाज गिरी है। आज से इन डॉक्टरों के ऊपर ड्रग्स इंस्पेक्टरों की नजर रहेगी। अब ये डॉक्टर अपने पास ज्यादा दवाइयां नहीं रख सकते। जांच में यदि किसी डॉक्टर की डिस्पेंसरी में गरीब मरीजों को मामूली कीमत पर दी जानेवाली दवाइयां ज्यादा मिलती हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इससे गरीब मरीजों के इलाज का खर्च ५ गुना बढ़ जाएगा।
जानकारों के अनुसार, ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के शेड्यूल्ड में साफ शब्दों में उल्लेख किया गया है कि डॉक्टरों को भी दवाइयों को रखने का अधिकार है। इसमें दवाओं के ज्यादा और कम रखने का कोई पैमाना नहीं दिया गया है। इसके बावजूद ‘घाती’ राज में गरीब जनता को परेशान करने के लिए डॉक्टरों पर इस तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं।
खरीदनी पड़ेंगी महंगी दवाएं
ऑल फूड एंड ड्रग होल्डर्स फाउंडेशन के अध्यक्ष अभय पांडेय ने कहा कि शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के संसाधनों की कमी है। यहां के ज्यादातर मरीज इस तरह की निजी डिस्पेंसरियों पर आश्रित रहते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि डॉक्टर गरीब मरीजों को जेनेरिक अथवा सस्ती दवाएं अपने पास से ही दे देते हैं। ऐसे में उन्हें १५० से २०० रुपए में दवाइयां मिल जाती हैं। लेकिन इस पैâसले से उनके सामने इलाज को और कठिन कर दिया गया है। अब उन्हें ये दवाइयां ५०० से १,००० रुपए में खरीदनी पड़ेंगी, जो उन्हें और वित्तीय संकट में डालने का काम करेंगी। इसके साथ ही इस पैâसले ने डॉक्टरों को नहीं, बल्कि गरीब जनता को संकट में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि केमिस्टों को लाभ पहुंचाने के लिए इस ड्राइव से डराने का काम एफडीए कर रहा है।
७० फीसदी केमिस्ट बिना प्रिस्क्रिप्शन के देते हैं दवा
अभय पांडेय ने कहा कि प्रदेश में एक लाख, जबकि एमएमआर में २० हजार केमिस्टों को लाभ पहुंचाने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि एफडीए को हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए कोई पैâसला लेना चाहिए। लेकिन इस सरकार में ठीक उसके विपरीत काम हो रहा है। अभय पांडेय ने कहा कि राज्य में ७० फीसदी केमिस्ट स्टोरों में बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाएं दे दी जाती हैं, जिस पर एफडीए का बिल्कुल भी कंट्रोल नहीं है। लेकिन गरीबों को कानून का सबक सिखाने का काम जरूर कर रहे हैं। फिलहाल जब इस बारे में एफडीए अधिकारियों से संपर्क करने के कई प्रयास किए गए लेकिन संपर्क नहीं हो सका।