सामना संवाददाता / मुंबई
यह बेहतरीन कविताओं की एक खूबसूरत शाम थी। श्रोताओं को समय और समाज से जुड़ी हुई ऐसी असरदार कविताएं सुनने को मिलीं, जिन्होंने उनके अंतस को समृद्ध किया। रविवार 8 जून 2025 को चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित कार्यक्रम में तीन अतिथि रचनाकारों ने रचना पाठ किया। ये थे डॉ. हरि प्रकाश श्रीवास्तव ‘अवधी हरि’ (लखनऊ), कवि विजयशंकर चतुर्वेदी (सतना) व कवि पत्रकार राकेश अचल (ग्वालियर)।
शुरुआत लखनऊ से पधारे प्रतिष्ठित कवि डॉ. अवधी हरि (हरि प्रकाश श्रीवास्तव) के काव्य पाठ से हुई। उन्होंने तरन्नुम में राम कथा पर बेहतरीन गजल सुना कर महाकवि तुलसीदास की काव्य कला को बख़ूबी रेखांकित किया। सहज-सरल भाषा में गहरी बात कहना एक बहुत बड़ा हुनर है। यह हुनर डॉ. अवधी हरि में है। उन्होंने सधे हुए अंदाज में अपने आस-पास के माहौल को जिस कुशलता के साथ अपनी गजलों में चित्रित किया उसका श्रोताओं ने तालियां बजाकर स्वागत किया। उनके चंद शेर देखिए
बाप का डर समझ में आता है
बाप बनकर समझ में आता है
ठीक से मोल घर के खाने का
घर के बाहर समझ में आता है
कितनी मुश्किल से आता है पैसा
खुद कमाकर समझ में आता है
सात चक्कर के बाद ही जग का
सारा चक्कर समझ में आता है
दिल धड़कता है कैसे पानी का
पुल के ऊपर समझ में आता है
विजयशंकर चतुर्वेदी एक सजग पत्रकार होने के साथ ही समकालीन कविता के महत्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने अपने कविता संग्रह “पृथ्वी के लिए तो रुको” से कई चुनिंदा कविताएं सुनाईं। विजयशंकर के पास घटनाओं के आर पार देखने का एक नजरिया है। इसलिए उनकी कविताएं अपने समय में गंभीर हस्तक्षेप करती हैं और सुनने वालों को सोचने के लिए बाध्य करती हैं। मौजूदा दौर के कई अहम सवालों को उन्होंने व्यंग्य शैली के जरिए इस हुनर के साथ पेश कर दिया कि सुनने वाले दंग रह गए। यही हुनर उनकी गजलों में भी दिखाई देता है। उनकी कविताओं और गजलों को श्रोताओं का भरपूर प्रतिसाद मिला। उनके दो अश’आर देखिए :
“सुनेंगे हम तुम्हारी क्यों, सुनोगे तुम हमारी क्यों
यहां हर आदमी करता है दावा रहनुमाई का”
“जरा सा बुदबुदाकर वक़्त को जेर-ओ-जबर कर दे
दुआ तो बस दुआ है कौन जाने क्या असर कर दे”
विजयशंकर का स्टैंड और कमिटमेंट स्पष्ट है, और अपनी कविता ‘संबंधीजन’ में वह कहते भी हैं-
“संभव है कि हमलावर मेरे कोई लगते हों
कोई धागा जुड़ता दिख सकता है आक्रांताओं से
पर मैं हाथ तक नहीं लगाऊंगा चीज़ों को नष्ट करने के लिए
भस्म करने की निगाह से नहीं देखूंगा कुछ भी
मेरी आंखें मां जैसी हैं
हाथ पिता जैसे।”
ग्वालियर से पधारे कवि-पत्रकार राकेश अचल दृष्टि संपन्न रचनाकार हैं। उनकी यही ख़ासियत उनकी अभिव्यक्ति को धारदार बनाती है। उनकी गजलों में समय के सवालों की असरदार उपस्थित है। सभी श्रोताओं ने उनकी गजलों में निहित सम्वेदना और व्यंग्य की चुभन को महसूस किया। कई महत्वपूर्ण सवालों को अपनी अभिव्यक्ति में शामिल करके उन्होंने ख़ुद को एक समर्थ गजलकार होने का सबूत दिया। उनके चंद शेर देखिए –
खर्च करना है हर घडी ख़ुद पर
मौत का इंतजार कौन करे
हो गई एक बार ग़लती से
गलतियां बार बार कौन करे
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नाम दवा का है लेकिन
कंपनियां नासूर बेचतीं हैं
सत्ता मद में पागल हैं देखो
सरकारें सिंदूर बेचतीं हैं
अतिथि रचनाकारों के बाद मुंबई के कुछ प्रमुख रचनाकारों ने काव्य पाठ किया। इनमें शामिल थे- पवन कुमार, सैयद रियाज, नरोत्तम शर्मा, अश्विनी उम्मीद, जुल्मी राम यादव, राजकुमार छापरिया, रीमा राय सिंह, रोशनी किरण और नीता श्रीवास्तव। इस अवसर पर मुंबई के कई सम्मानित रचनाकारों ने अपनी मौजूदगी से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।