एक बूंद

बारह मास बहती हो सरिता
अथाह जल बरसाता वारिद
मात्र एक बूंद स्वाति नक्षत्र की
श्वासों की डोर थाम लेती
प्यारे पाखी चातक की।
जीवन का एक-एक क्षण
जीती सीप जल में
एक कण सिक्ता का जाकर भीतर
बदल जाता अनमोल मुक्ता में।
करो स्नान कितने भी सुरसरी में
अर्चना ध्यान तट मां गंगा पर
मात्र एक बूंद की इच्छा होती
आत्मा शरीर त्याग रही होती।
गालों पर ढलती एक बूंद आंसू की
जब आंखों से बह आती
मन की सभी भावनाओं का
दर्पण बन जाती।
गागर भरी अमृत में
जब गिर जाती एक बूंद विष की
सारे अमृत को विष बना देती
और एक बूंद अमृत की विष में मिल विष हो जाती।
निराशा के सागर में तिरते मानव को
एक बूंद आशा की मिल जाए
डूबता मानव अपने हाथों को
बना पतवार किनारे लग जाए।
एक बूंद रक्त की गिर धरा पर
नया रक्तबीज बना देती
एक दाग चरित्र चादर पर
बेटी के जीवन मार्ग को अभिषप्त सदा के लिए कर देती।
-बेला विरदी

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