मनमोहन सिंह
१८वीं लोकसभा के पहले विशेष सत्र में जो कुछ हुआ, उसने पिछले १० वर्षों से संसद में सत्तानशीन पार्टी के चले आ रहे एकाधिकार को तोड़ कर रख दिया। गरमा-गरम चर्चा बेशक हुई, लेकिन विपक्ष कई मुद्दों पर सरकार के साथ भिड़ गया। विशेष सत्र अंतत: दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं की टिप्पणियों को हटाने पर जुबानी जंग के साथ खत्म हुआ। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण के उन हिस्सों को हटा दिया, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना में थे। उसी दौरान निचले सदन में अध्यक्ष ओम बिरला के आदेश पर पीएम और भाजपा पर राहुल गांधी की टिप्पणियों के कुछ हिस्सों को रिकॉर्ड से हटा दिया गया, जिससे विभिन्न सांसदों के लिए अलग-अलग मानदंड लागू होने के आरोप लगने लगे हैं।
हालांकि, राहुल गांधी ने लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी लिखकर इस बात पर आपत्ति दर्ज की है कि लोकसभा में दिए गए उनके भाषण का एक बड़ा हिस्सा कार्यवाही से हटा दिया गया। राहुल ने उस हिस्से को दोबारा शामिल करने का अनुरोध भी किया है। राहुल गांधी ने सवाल उठाते हुए कहा कि अनुराग ठाकुर का भाषण आरोपों से भरा था। इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से उनके भाषण से केवल एक शब्द को हटाया गया है।
टिप्पणियां कब एक्सपंज्ड (मिटाई) की जाती हैं?
संसद कार्यवाही के दौरान बोली जाने वाली और होने वाली हर बात का शब्दश: रिकॉर्ड रखती है। वहीं संविधान का अनुच्छेद १०५ सांसदों को संसद में कुछ विशेषाधिकार और बोलने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, यह संविधान के अन्य प्रावधानों और सदन के नियमों के अधीन है। पीठासीन अधिकारी यानी उच्च सदन में चेयरमैन (सभापति) और निचले सदन में स्पीकर (अध्यक्ष) के आदेश पर जिन शब्दों, वाक्यांशों और अभिव्यक्तियों को `अपमानजनक, अशोभनीय, असंसदीय या अभद्र’ माना जाता है, उन्हें रिकॉर्ड से एक्सपंज्ड या हटा दिया जाता है। इस प्रयोजन के लिए, लोकसभा सचिवालय `असंसदीय’ शब्दों और अभिव्यक्तियों की एक विस्तृत सूची रखता है।
संसदीय शिष्टाचार के नियम, जो राज्यसभा में अनुशासन और मर्यादा सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं, के मुताबिक `जब सभापति यह मानता है कि कोई विशेष शब्द या अभिव्यक्ति असंसदीय है तो उसे बिना किसी बहस व प्रयास के तुरंत वापस ले लिया जाना चाहिए। जिन शब्दों या अभिव्यक्तियों को असंसदीय माना जाता है और अध्यक्ष द्वारा उन्हें बाहर निकालने का आदेश दिया जाता है, उन्हें मुद्रित बहस से हटा दिया जाता है।
एक बार प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक सदस्य द्वारा अंतर्राष्ट्रीय हालात के बारे में पूरक प्रश्न पूछते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति का जिक्र करने पर आपत्ति जताई। नेहरू का कहना था कि किसी विदेशी राष्ट्र के प्रमुख का उल्लेख उस भाषा में किया जाना `उचित नहीं’ होगा, जिसका प्रयोग सदस्य ने किया हो। इसके बाद आपत्तिजनक शब्दों को हटा दिया गया। लेकिन आज की तारीख में एक्सपंज्ड करने के मापदंड पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गए हैं।
जैसा कि आरोप है, सत्ताधारी दल के नेताओं के शब्दों पर आपत्ति कम उठाई जाती है और विरोधी पक्ष के नेताओं की भाषा व शब्दों पर आपत्ति उठाकर उन्हें हटा दिया जाता है। सत्ता पक्ष कभी नहीं चाहता कि उनका काला चिट्ठा (उन पर लगाए गए आरोपों के रूप में) संसद के रिकॉर्ड में हमेशा के लिए न रहे, लेकिन दूसरी ओर वह विपक्ष पर लगाए गए आरोपों को नहीं हटाता। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के बयानों को जिस तरह हटाया गया है, वह सत्ता पक्ष की मंशा पर सवाल उठाने के लिए काफी है।