मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाप्लास्टर ऑफ पेरिस के खिलाफ फिर उठी आवाज

प्लास्टर ऑफ पेरिस के खिलाफ फिर उठी आवाज

सामना संवाददाता / उल्हासनगर

महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लाखों की तादाद में प्रदूषणकारी प्लास्टर ऑफ पेरिस की गणेश प्रतिमाओं के निर्माण के कारण पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हुआ है, जिस कारण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने १२ मई, २०२० से देशभर में प्रदूषणकारी प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री आदि पर प्रतिबंध लगा दिया है। भले ही २०२१ में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को बरकरार रखा, तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा यह बताया गया कि करोड़ों की तादाद में मूर्तियां अभी बन चुकी हैं। तो यह प्रतिबंध हम अगले साल से लागू करेंगे। ३ साल से महाराष्ट्र सरकार द्वारा न्यायालय को यही बताया जा रहा है। लेकिन आज भी बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध ९० फीसदी मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस (झ्ध्झ्) से बनी हैं। पिछले दो दशकों से पर्यावरण संगठन लगातार पर्यावरण अनुकूल मिट्टी की गणेश मूर्तियों के बारे में समाज को जागरूक व शिक्षित कर रहे हैं।
परंतु इसका कोई उपयोग न होता देख पर्यावरण प्रेमियों द्वारा महाराष्ट्र पर्यावरण विभाग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल और महानगर पालिकाओं से लगातार पत्रव्यवहार किया गया। ठाणे महानगर पालिका द्वारा २ वर्ष पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस की गणेश मूर्तियों पर पुर्णत: पाबंदी लगाई गई। इसके बावजूद मनपा क्षेत्र में झ्ध्झ् मुर्तियां बनाना व बिकना शुरू है।
गणेशोत्सव मनाने के पीछे हिंदू धर्म के शुद्ध और महान उद्देश्य की रक्षा के लिए, राज्य सरकार को हमारी पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं को विकसित करने के लिए किसी भी दबाव के बिना प्लास्टर ऑफ पेरिस प्रतिबंध को तुरंत लागू करना चाहिए। इसके साथ ही नियम तोड़नेवालों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसी मांग बाम्बे हाइकोर्ट में दायर जनहित याचिका ९६/२०२४ में रोहित जोशी व अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई।
याचिकाकर्ता रोहित मनोहर जोशाी, ठाणे और उनके अन्य सहयोगी हर्षद दिघे मीरा भयंदर, सरिता खानचंदानी उल्हासनगर, मंगेश अनंत पंडित, कलवा, नरेश चव्हाण, कल्याण, वैâलास रोटाले, अमरावती, राजेंद्र गोविंद जाधव, रत्नागिरी, मारुति कुंभार, सतारा, संतोष शहरकर, नासिक, अशोक कडु मुंबई, श्रीकांत कुंभार कोल्हापुर, रवींद्र कुंभार, अंबरनाथ द्वारा यह मांग दोहराई गई है, जिसमें दिलचस्प बात यह है कि १२ याचिकाकर्ताओं में से ९ याचिकाकर्ता स्वयं गणेश मूर्तिकार हैं और ३ याचिकाकर्ता पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। ३१ जुलाई २०२४ को मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय के समक्ष एडवोकेट रोनिता भट्टाचार्य बेक्टर द्वारा याचिका की पहली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की बात को गंभीरता से रखा गया। बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय ने याचिका सुनने के बाद सभी प्रतिवादियों को ३ सप्ताह के भीतर शपथ पत्र पर अपना जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।

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