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वायु प्रदूषण से हो रहा फेफड़ों का कैंसर …सिगरेट न पीनेवाले भी हो रहे शिकार

– ३० से ४० की उम्र वालों में बढ़े मामले स्वास्थ्य महकमा हुआ चिंतित
सामना संवाददाता / मुंबई
हिंदुस्थान समेत पूरी दुनिया में बीते कुछ वर्षों में वायु प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ा है। यह वायु प्रदूषण अब लोगों को जानलेवा बीमारी दे रहा है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित फेफड़े हो रहे हैं। आलम यह है कि यह फेफड़ों के वैंâसर के मामलों को बढ़ा रहा है। इस समय ३० से ४० आयु श्रेणी में शामिल पुरुष और महिलाओं में केस तेजी से बढ़े हैं। बताया गया है कि १० में से ५ सिगरेट पीने वाले और ५ धूम्रपान न करने वाले फेफड़ों के वैंâसर से पीड़ित हैं, जो स्वास्थ्य महकमे को चिंतित कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण प्रदूषण के अलावा इनडोर वायु गुणवत्ता, चयापचय संबंधी समस्याएं और कार्यस्थल पर प्रदूषण जैसे कारकों ने भी धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों को बढ़ा दिया है। फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामले देश में चिंता का विषय बन रहा है, क्योंकि यह लाखों लोगों की जान ले रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के शोधकर्ताओं ने बताया कि देश में २०२५ तक फेफड़ों के कैंसर के मामलों में एक दशक पहले की स्थिति की तुलना में सात गुना से अधिक वृद्धि होने की संभावना है। बता दें कि ३०-४० की उम्र के पुरुष और महिलाओं में लगातार खांसी जैसे लक्षण दिख रहे हैं। साथ ही ऐसे लोगों में धूम्रपान का इतिहास न होने के बावजूद फेफड़ों के वैंâसर का पता चल रहा है। फेफड़ों के कैंसर के रोकथाम के लिए समय रहते निदान और इलाज होना काफी जरूरी है।
पहले बहुत कम सामने आते थे मामले
मुंबई के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. समीर गार्डे ने कहा कि मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में वायु प्रदूषण फेफड़ों के वैंâसर का कारण बन रहा है। २० साल पहले फेफड़े के वैंâसर के अधिकांश मरीजों का धूम्रपान करने का इतिहास था। पहले फेफड़े के वैंâसर से पीड़ित १० में से ८ धूम्रपान करने वाले और २ धूम्रपान न करने वाले होते थे। हालांकि, पिछले १० से १२ वर्षों में धूम्रपान न करने वालों में भी वैंâसर के मामले बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। अब १० में से ५ धूम्रपान करने वाले और ५ धूम्रपान न करने वाले रोगी हैं।
घर के भीतर भी बढ़ रहा प्रदूषण
डॉ. समीर गार्डे ने कहा कि अगरबत्ती, सुगंधित मोमबत्तियां और मच्छर भगाने वाली दवाएं जलाने से घर के अंदर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या ऑब्सट्रक्टिव एयरवेज डिजीज जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं होती हैं। मधुमेह, मोटापा, गतिहीन जीवनशैली जैसे जीवनशैली से संबंधित चयापचय संबंधी विकार अप्रत्यक्ष रूप से समग्र रूप से फेफड़ों के वैंâसर के मामलों में वृद्धि में योगदान कर सकते हैं। धातु काटने या रासायनिक जोखिम वाले उद्योगों से कार्यस्थल प्रदूषक भी श्वसन स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

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