सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में भाजपा नेतृत्ववाली महायुति सरकार में उपमुख्यमंत्री बनते ही अजीत पवार के बेनामी संपत्तियों के मामले में आयकर विभाग ने कदम पीछे ले लिया। सूत्रों की मानें तो अजीत पवार की लगभग एक हजार करोड़ रुपए की जब्त संपत्ति को आयकर विभाग के ट्रिब्यूनल ने लौटाने का आदेश दिया है। जानकारों की मानें तो अजीत पवार की यह बेनामी संपत्ति अब नामी संपत्ति हो गई है।
आयकर विभाग ने तीन अलग-अलग कंपनियों में बेनामी संपत्ति होने का हवाला देकर अजीत पवार की एक हजार करोड़ रुपए तक की संपत्ति को जब्त कर लिया था, अब जब अजीत पवार भाजपा का मकसद पूरा होने तक अर्थात सरकार स्थापन होने तक महायुति के साथ रहे हैं तो भाजपा ने उन्हें इनाम के तौर पर आयकर विभाग का यह तोहफा दिया है।
कल तक अजीत पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप में सख्त कार्रवाई करने का दावा करनेवाला आयकर विभाग अब सबूत पेश नहीं कर पाया है। ऐसा दावा किया था कि पार्थ फाउंडेशन और अन्य कंपनियां अजीत पवार व पार्थ पवार के लिए संचालित की जा रही थीं। गजानन पाटकर ने तीन कंपनियों निबोध, प्रतुर्ण, और अपरिमेय डमी कंपनियों को पार्थ पवार के फायदे के लिए तैयार किया। कंपनियों और उनके आर्थिक लेन-देन से सीधे अजीत पवार या सुनेत्रा पवार को कोई लाभ हुआ।
३ कंपनियों को बताया था बेनामी
बता दें कि १३ जून २०१४ को नरिमन पॉइंट स्थित निर्मल बिल्डिंग में एक जगह तीन कंपनियां निबोध, प्रतुर्ण और अपरिमेय के जरिए खरीदी गर्इं। आयकर विभाग ने छापेमारी के दौरान इसे बेनामी संपत्ति बताया था। इन कंपनियों का कोई वास्तविक व्यवसाय नहीं था। निबोध कंपनी के पूर्व निदेशकों में मिलिंद करमरकर, अवी गावडे और नितिन जोग ने स्वीकार किया कि वे केवल डमी निदेशक थे। वर्तमान निदेशक हंसा शाह, कशिश दुडेजा, आरती शाह और चांदनी जैन भी धीरेंद्र शाह के कर्मचारी बताए गए।