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अखिलेश यादव विधानसभा में शिवपाल को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाएंगे!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सफलता से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने परिवार में सुलग रहे कलह को ढकने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों समय आगे बढ़ रहा है, अखिलेश यादव का तनाव बढ़ता जा रहा है। 29 जुलाई से उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र आरंभ हो रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसे दो-दो महत्वपूर्ण पदों पर स्वयं कब्जा कर अखिलेश यादव परिवार में अपने चाचा शिवपाल यादव को बड़ी आसानी से नीचा दिखा दिया, लेकिन अब यदि दोबारा शिवपाल यादव को साइड लाइन किया तो उसका इफेक्ट 2027 के चुनाव में उन्हें झेलना पड़ेगा। बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार 2014, 2017, 2019, 2022 का चार चुनाव हार कर टूट गए थे। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से पार्टी छिनने के बाद भी अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल यादव की राजनैतिक ताकत की कुचलना चाहते थे, लेकिन कार्यकर्ताओं में अपनी लोकप्रियता और कठिन परिश्रम के कारण शिवपाल का अखिलेश कुछ बिगाड़ न सके। उल्टे मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद जब उनकी लोकसभा सीट रिक्त हुई तो उस पर अपनी पत्नी को निर्वाचित कराने की गरज से शिवपाल यादव के सामने सरेंडर किया। डिंपल यादव को आगे कर अखिलेश यादव ने मतलब साध लिया, लेकिन जब शिवपाल यादव को सम्मान देने की बात आयी तो उनके ऊपर रामगोपाल यादव को थोप दिया। शिवपाल को राष्ट्रीय महामंत्री बनाया तो रामगोपाल को प्रमुख राष्ट्रीय महामंत्री बनाया। धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ और रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को फिरोजाबाद लड़ाने के साथ शिवपाल यादव व उनके बेटे आदित्य यादव को बदायूं लोकसभा सीट दे दिया। अब रामगोपाल यादव के घर में दो सांसद हैं और उस शिवपाल के घर में केवल एक सांसद हैं, जो मुलायम सिंह के लिए जान की बाजी लगा कर समाजवादी पार्टी ही नहीं खड़ी किया, बल्कि मुलायम सिंह यादव को नेता के रूप में स्थापित करने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जानाकार बताते हैं कि शिवपाल अपना व बेटे के लिए दो अलग-अलग सीट चाहते थे। उनकी योजना स्वयं आजमगढ़ और बेटे को दूसरी सीट पर चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री होने के चंद महीनों के भीतर ही अखिलेश के मन में शिवपाल यादव को लेकर असुरक्षा की ऐसी क्या भावना बैठ गई कि वह राजनीति के मंच पर शिवपाल यादव में अपना दुश्मन नम्बर एक देखने लगे।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 29 जुलाई से चलने वाले मानसून सत्र के पूर्व लाल बहादुर यादव को विधानपरिषद में नेता विपक्ष मनोनीत किया है। सपा की आंतरिक सिर फुटौव्वल की गहरी जानकारी रखने वालों का मानना है कि शिवपाल यादव को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से रोकने के लिए ही अखिलेश यादव ने ऐसा किया है। अखिलेश के संदर्भ में प्रचलित एक कहानी के अनुसार, आरोप है कि वह दुश्मन का फुटबॉल खेलने तक इंतकाम लेते हैं। पार्टी में शिवलाल यादव को लेकर हरदम सजग रहने वाले अखिलेश यह जानते हैं कि यदि बिना शिवपाल पीडीए के फार्मूले से नेता प्रतिपक्ष बनाएंगे तो सांप भी मर जाएगा, लाठी भी नहीं टूटेगी। अखिलेश यादव के नेता प्रतिपक्ष रहते विधानसभा में सत्र के दौरान शिवपाल यादव को अग्रिम पंक्ति में स्थान मिलता था, लेकिन रुतबा तो अखिलेश कही हिस्से में रखा गया था। अगले कुछ घंटों या दिनों में नेता प्रतिपक्ष की घोषणा होगी। अखिलेश को अपने रणनीति के अनुसार, शिवपाल यादव को हटाने का अच्छा अवसर मिल गया है। शिवपाल यादव को जानने वालों का मानना है कि राजनीति में शिवपाल इतना बेचारा कभी नहीं बने थे। इस बीच अखिलेश यादव समर्थक एक पूर्व विधायक का कहना है कि यदि सांसद बेटे की राजनीति की चिंता होगी तो शिवपाल कोई बगावती कदम नहीं उठाएंगे।

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