खिचड़ी दाढ़ी
अधपके बाल
निर्बल, ढला गात
कुछ गिरती पड़ती चाल
बडबडाता चला जा रहा अपने आप
लड़ रहा हो जैसे
सुन रहा किसी की
सुना रहा किसी को
हड़बड़ा रहा हे
आगे पीछे चलने वालों को ताड़ रहा है
कोई अड़ोसी पड़ोसी तो नहीं है
क्रोध की अग्नि में जला जा रहा हे
हो गया खड़ा
देख पेड़ की छांव
बिछा कंधे का गमछा
धरती पर बैठ गया है
मैं भी चल रहा था
पीछे पीछे उसके
गया बैठ ,देख एक ठांव
उठ गया अचानक वृद्ध
हाथ पांव झटक रहा हे
मानो किसी को पटक रहा हे
ईंट को मार एक किक
धरती पर गिर पड़ा है
मैं समझ गया हूं
यह वृद्ध नितान्त अकेला है
परिवार से गया ठेला है
न कोई करता वाद समवाद
बेठता न कोई पास है
सुना चुका होगा अपने जीवन की सभी कथा कहानी
हो गई सभी अब नई नस्ल के लिए पुरानी
देख रहा हे कई दिनों से
थाली खाने की एक जैसी
आपा खो गया हे
कुछ भुनभुना गया है खोल द्वार बाहर निकल आया है
गुबार कुछ निकल गया है
मन कुछ हल्का हो गया है।
बेला विरदी।