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अमरनाथ यात्रा और प्रकृति का कहर! …बादल फटने से जा चुकी है सैकड़ों जानें

–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। यह पहली बार नहीं था कि पिछले साल ८-९ जुलाई के दिन अमरनाथ गुफा के बाहर बादल फटने के कारण १५ श्रद्धालुओं की जाने गई हो, बल्कि अतीत में पहले भी कई बार बादलों ने सैंकड़ों श्रद्धालुओं की जान ली है। और अगर यह कहा जाए कि अमरनाथ यात्रा और प्रकृति के कहर का साथ जन्म-जन्म का है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर साल औसतन १०० के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जान गंवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में ४०० श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी सामने आया था जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है।

अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी? इसका कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। पर हादसों ने इसे कब से अपनी चपेट में लिया है? इसकी जानकारी है। वर्ष १९६९ में बादल फटने के कारण १०० के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी जरूर दस्तावेजों में दर्ज है। यह इसमें शामिल होने वालों के साथ शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था।

दूसरा हादसा था तो प्राकृतिक लेकिन इसके लिए इंसानों को अधिक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि यात्रा मार्ग के हालात और रास्ते के नाकाबिल इंतजामों के बावजूद एक लाख लोगों को जब वर्ष १९९६ में यात्रा में इसलिए धकेला गया क्योंकि आतंकी ढांचे को ‘राष्ट्रीय एकता’ के रूप में एक जवाब देना था तो ३०० श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए।

प्रत्यक्ष तौर पर इस हादसे के लिए प्रकृति जिम्मेदार थी मगर अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार तत्कालीन राज्य सरकार थी जिसने अधनंगे लोगों को यात्रा में शामिल होने के लिए न्यौता दिया तो बर्फबारी ने उन्हें मौत का ग्रास बना लिया। अगर देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर मरने वालों का आंकड़ा यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष ७० से १०० के बीच रहा है। इसमें प्रतिदिन बढ़ोतरी इसलिए हो रही है क्योंकि अब यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले यह संख्या इसलिए कम थी क्योंकि यात्रा में इतने लोग शामिल नहीं होते थे जितने अब हो रहे हैं।

अगर मौजूद दस्तावेजी रिकार्ड देखें तो वर्ष १९८७ में ५० हजार के करीब श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल हुए थे और आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्ष १९९० में यह संख्या ४८ सौ तक सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद जब इसे एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में प्रचारित किया जाने लगा तो इसमें अब ३ से ५ लाख के करीब श्रद्धालु शामिल होने लगे हैं।

जानकारी के अनुसार, साल २०१० में भी गुफा के पास बादल फटा था, लेकिन तब भी कोई नुकसान नहीं हुआ था। वर्ष २०२१ में २८ जुलाई को गुफा के पास बादल फटने से तीन लोग इसमें फंस गए, जिन्हें बचा लिया गया था। इसमें कोई जानी नुकसान नहीं हुआ था। पर पिछले साल बादल फटने से बड़ा नुकसान जरूर हुआ था।

वर्ष २०१५ में बालटाल आधार शिविर के पास बादल फटने से काफी नुकसान हुआ था। इस दौरान लंगरों के अस्थायी ढांचे ध्वस्त हो गए थे और दो बच्चों समेत तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी।

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