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अमरनाथ यात्रा सैद्धांतिक तौर पर समाप्त हुई, अब श्रद्धालु को शिरकत की अनुमति नहीं

लगातार दूसरे साल श्रावण पूर्णिमा से कई दिन पहले श्रद्धालु नदारद हुए तो यात्रा समाप्त कर दी गई

सुरेश एस डुग्गर / जम्मू

लगातार दूसरे वर्ष वार्षिक अमरनाथ यात्रा को सैद्धांतिक तौर पर कई दिन पहले ही समाप्त कर दिया गया है। अब श्राइन बोर्ड ने श्रद्धालुओं की कमी को देखते हुए अब इसमें श्रद्धालुओं के जाने पर रोक लगा दी है। हालांकि, उसका कहना था कि 62 दिवसीय अमरनाथ यात्रा, जो इस वर्ष 1 जुलाई को शुरू हुई थी 31 अगस्त को छड़ी मुबारक के कार्यक्रम के साथ समाप्त होगी।
श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक, इस वर्ष यात्रा में भारी भीड़ देखी गई है और अब तक 4.4 लाख से अधिक तीर्थयात्री पवित्र अमरनाथजी तीर्थस्थल पर दर्शन कर चुके हैं। श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने सूचित किया है कि तीर्थयात्रियों के प्रवाह में काफी कमी और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा संवेदनशील हिस्सों पर यात्रा ट्रैक की तत्काल मरम्मत और रख-रखाव के कारण पवित्र गुफा की ओर जाने वाले दोनों ट्रैक पर तीर्थयात्रियों की आवाजाही कम हो गई है। इसलिए यात्रा 23 अगस्त से दोनों मार्गों से अस्थायी रूप से निलंबित रहेगी, पर छड़ी मुबारक 31 अगस्त को समाप्ति को चिह्नित करते हुए पारंपरिक पहलगाम मार्ग से आगे बढ़ेगी।
दरअसल, अमरनाथ यात्रियों की संख्या में कमी आने के कई अन्य कारणों में जम्मू-पठानकोट नेशनल हाईवे पर दो पुलों को बंद कर दिए जाने से बनी अव्यवस्था के अतिरिक्त हिमलिंग का पिघल जाना भी शामिल है। पिछले साल भी खराब मौसम के कारण कई दिन पहले ही यात्रा की समाप्ति की घोषणा कर दी गई थी और फिर रक्षाबंधन के दिन छड़ी मुबारक की स्थापना की औपचारिकता निभाई गई थी। इस बार भी यह औप्चारिकता निभाई जाएगी।
इस बार यह यात्रा 31 अगस्त तक रक्षाबंधन के दिन तक चलनी थी और प्रशासन की परेशानी यह है कि वह 200 से 300 के बीच शामिल हो रहे श्रद्धालुओं के लिए अब 2 लाख के करीब सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा के लिए तैनात करने को राजी नहीं है। हालांकि, शुरू में प्रशासन को यह उम्मीद थी कि संख्या बरकरार रहेगी पर ऐसा हुआ नहीं। जैसा कि श्रद्धालुओं की संख्या में कमी के कारण लंगर वालों ने इस माह के आरंभ में ही अपना सामान समेटना शुरू कर दिया था। दो-तिहाई से अधिक लंगर वाले लौट चुके हैं। बालटाल, पहलगाम से यात्रा मार्ग पर कई शिविरों में लंगर भी वापिस जा चुके हैं। चूंकि श्रद्धालुओं की संख्या कम हो रही है, इसलिए लंगर कम होना शुरू हो गए थे। अंत तक दो चार लंगर रहेंगे।
यह सच है कि पिछले कई सालों की यह परंपरा बन चुकी है कि यात्रा के प्रतीक हिमलिंग के पिघलने के उपरांत यात्रा हमेशा ढलान पर रही है और श्राइन बोर्ड की तमाम कोशिशों के बावजूद हिमलिंग यात्रा के शुरू होने के कुछ ही दिनों के उपरांत पूरी तरह से पिघल जाता रहा है। ऐसे में श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार, यात्रा की अवधि पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता आन पड़ी है। दरअसल, कई सालों से जबसे यात्रा की अवधि को दो से ढाई माह किया गया है। कई संस्थाओं ने इसे घटाने के सुझाव दिए हैं। लंगर लगाने वाली संस्थाओं ने इसे घटा कर 25 से 30 दिनों तक ही सीमति करने का आग्रह कई बार किया है।
अगर देखा जाए तो यात्रा की अवधि कम करने की बात पर्यावरण विभाग और अलगाववादी भी पर्यावरण की दुहाई देते हुए अतीत में करते रहे हैं। पर अब अधिकारियों को लगने लगा है कि हिमलिंग के पिघल जाने के उपरांत यात्रा में श्रद्धालुओं की शिरकत को जारी रख पाना संभव नहीं है। जब तक कि हिमलिंग को सुरक्षित रखने के उपाय नहीं ढूंढ़ लिए जाते।

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