मुख्यपृष्ठग्लैमर‘आसमान से आया फरिश्ता-नाम था मोहम्मद रफी’

‘आसमान से आया फरिश्ता-नाम था मोहम्मद रफी’

डाॅ. आशीष तिवारी

संगीत की स्वर-लहरियों में संसार को मोहित कर देने वाला, सुरों की बहती गंगा में आत्मा को डुबो देने वाला, गायकी के पवित्र मंदिर में ईश्वर से साक्षात्कार करा देने वाला और सारी दुनिया को अपने गले की अद्भुत कारीगरी से अचेत कर देने वाला अगर कोई संगीत का फरिश्ता धरती पर उतर कर आया तो वो मोहम्मद रफी ही थे।
आज के दिन ठीक सौ साल पहले २४ दिसंबर सन् १९२४ को आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कोटला सुल्तान सिंह प्रांत में जन्मा एक बच्चा, जिसका नाम ‘फीको’ था, उसे दुनिया ने मोहम्मद रफी के नाम से जाना। रफी साहब सन् १९४४ में मुंबई आ गए थे और सन् १९४५ में उन्हें पहला ब्रेक के मिला। उसके बाद तो रफी साहब मौसीकी के आसमान पर अपने हुनर का जलवा बिखेरते चले गए। रफी साहब ने अपने ३५ साल के समृद्ध करियर में विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, पंजाबी, कोंकणी, भोजपुरी, उड़िया, कन्नड़, बंगाली, गुजराती, असमिया, सिंधी, तमिल, तेलुगू, मैथिली, मगधी और मराठी आदि भाषाओं में लगभग ७,००० गाने गाए। इनमें गायकी की सभी विधाओं जैसे कि रोमांटिक गाने, गजल, भजन, देशभक्ति गीत, कव्वाली आदि शामिल हैं।
वो गायकी की दुनिया में उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां उनकी गायकी की समीक्षा करना एक अपराध से कम नहीं है। उन्होंने एक से बढ़कर एक गाने गा दिए हैं। वो गायकी के एक ऐसे धुरंधर कलाकार थे, जिससे कोई भी संगीतकार अपनी धुनों को हू-बहू निकलवा लेता था और क्रिएटिविटी के धरातल पर संतुष्टि के चरम पर पहुंच जाता था। अगर पूछा जाए तो एक बड़े से बड़ा संगीतकार भी उनका एक सबसे अच्छा गाना ढ़ूंढ़ने में नाकाम हो जाएगा। इसलिए हम भी सबसे अच्छा गाना ढ़ूंढ़ने की गुस्ताखी नहीं करेंगे, बल्कि उनके महानतम गानों में से कुछ की चर्चा करने की कोशिश करेंगे। चलिए, उनके संगीत के कुबेर रूपी खजाने से कुछ मोती चुनते हैं।
गाने हमारी भावनाओं को अपने तरीके से प्रकट करते हैं। हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को छूता कोई न कोई गाना बन चुका है और इस कमाल में सबसे बड़ी भूमिका गायक की होती है, गीतकार और संगीतकार से भी बड़ी। इस कड़ी में रफी साहब के गाए कुछ ऐतिहासिक गाने मसलन ‘सूरज’ फिल्म का यह गाना ‘बहारों फूल बरसाओ’ इतना लोकप्रिय है कि हर विवाह में इसके बजे बिना मानो विवाह अधूरा रह जाएगा। वहीं ‘नीलकमल’ फिल्म का यह गाना ‘बाबुल की दुवाएं लेती जा’ भी हर बिदाई के समय बजना तय है। मोहब्बत के सुरूर में आकंठ डूबा फिल्म कन्यादान का यह गाना ‘लिखे जो खत तुझे’ मानो अपनी महबूबा को लिखे रूमानी खतों की आसमानी दास्तान सुनाता जा रहा हो।
फिल्म का ‘चा चा चा’ का गीत ‘खुशी जिसने खोजी वो धन लेके लौटा’ एक प्रेमी के अपनी प्रेमिका से बिछोह के उस बेइंतेहा दर्द को इस शिद्दत से पेश करता है, जिसकी आंच हमारे दिल तक महसूस होती है। फिल्म ब्रह्मचारी का गीत ‘मैं गाऊं तुम सो जाओ’, इतनी मिठास भरी लोरी भला कोई गा सकता है। फिल्म कोहिनूर का यह क्लासिकल गाना ‘मधुवन में राधिका नाची’ बेमिसाल है। कहना चाहूंगा कि सुरों के पक्के तो बहुत से गायक हैं, पर सुरों को सुरीली आवाज में शहद की मिठास के संग पेश करना केवल रफी साहब के वश की बात थी । हास्य गीत की बात करें तो फिल्म ‘प्यासा’ के इस गाने ‘सर जो तेरा चकराए’ में महान कॉमेडियन जॉनीवाकर के व्यक्तित्व को हू-बहू गाने में उतार दिया।
फिल्म ‘बैजू बावरा’ का अमर भजन ‘मन तरपत हरि दर्शन को आज’ सर्वश्रेष्ठ भजन गीतों में एक हैं, जिसमें रफी साहब ने अपने गले से जो स्वर प्रस्फुटित किए वो सीधे ईश्वर तक अवश्य पहुंच गये होंगे। ‘अमर अकबर एंथोनी’ की वो पावरफुल कव्वाली ‘परदा है परदा’ जिसने हर सुनने वाले‌ को झुमा कर रख दिया था। अंत में एक बेहद संवेदनशील गाने का उल्लेख करना चाहूंगा फिल्म ‘गाइड’ का अमर गाना ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं’ इसका वो अंतरा याद करिये ‘लाख मना ले दुनिया साथ न ये छूटेगा’। इस गाने के द्वारा एक मखमली आवाज दिल की गहराइयों में हमेशा के लिए ठहर जाती है और प्रीत की सतरंगी गलियों में प्रियतमा के संग सात जन्मों के बंधन का कोमल अहसास देती है ।
रफी साहब पर चर्चा अनंत है और असंभव भी। यह हमारी खुशनसीबी है कि हमने अपने जीवनकाल में लगभग हर दिन उनकी आवाज को सुना है और उसका आनंद लिया है। उनकी आवाज हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा बन गयी है। हमने उन्हें भले देखा न हो, पर महसूस जरूर किया है। जिसे खुद ईश्वर ने अपने हाथों से गढ़ा हो वो आसमान से आया फरिश्ता यूं तो वापस चला गया, पर उसकी जादुई आवाज इस धरती पर हमेशा रहेगी । हमारे साथ भी हमारे बाद भी।
(इस फिल्म समीक्षा के लेखक मुंबई के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. आशीष तिवारी हैं, जो बांबे हॉस्पिटल, उमराव वोक्हार्ट हॉस्पिटल, जाइनोवा हॉस्पिटल जैसे अनेक अस्पतालों संबद्ध रहे हैं।)

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