मुख्यपृष्ठनए समाचारकभी-कभी: रही अधूरी प्रेम कहानी

कभी-कभी: रही अधूरी प्रेम कहानी

यू.एस. मिश्रा

दुनिया की तमाम दीवारों को तोड़कर दो दिल एक जिस्म और जान हो रहे कलाकारों में आज इंडस्ट्री के तमाम कलाकारों का शुमार है, लेकिन बीते जमाने में एक-दूसरे को दिलोजान से चाहनेवाले देव आनंद और सुरैया को उनकी मंजिल सिर्फ इसलिए नहीं मिली क्योंकि उनके प्रेम के बीच सुरैया की नानी एक अभेद दीवार की तरह खड़ी हो गर्इं, जिसे भेद पाना सुरैया के लिए मुमकिन न हुआ।

पंजाब स्थित गुरदासपुर के रहनेवाले धर्मदेव फिल्मों में हीरो बनना चाहते थे, लेकिन पिता इसके खिलाफ थे। धर्मदेव एमए करना चाहते थे, परंतु पिता के पास उन्हें कॉलेज में भेजने के लिए पैसे नहीं थे। अब धर्मदेव ने उनसे कहा कि मुझे एमए करवाइए वरना मैं फिल्मों में चला जाऊंगा। खैर, आंखों में ढेर सारे सपने और जेब में मात्र ३०-३५ रुपए लेकर १९४३ में धर्मदेव लाहौर से प्रâंटियर मेल पकड़कर मुंबई आ गए। उनके पास न तो कोई सिफारिशी पत्र था और न ही इंडस्ट्री में उनकी कोई जान-पहचान थी। मुंबई पहुंचने के बाद धर्मदेव ने अपने नाम से ‘धर्म’ शब्द को हटाकर बचे हुए शब्द ‘देव’ और सरनेम ‘आनंद’ को मिलाकर अपना नाम देव आनंद रख लिया। दो-ढाई वर्षों तक इंडस्ट्री की खाक छानने के बाद १९४५ में ‘प्रभात फिल्म’ की फिल्म ‘हम एक हैं’ से उन्हें पहला ब्रेक मिला। शुरुआती तीन फिल्मों के फ्लॉप होने के बाद फिल्म ‘जिद्दी’ से इंडस्ट्री में उनकी पहचान अभी बननी शुरू ही हुई थी कि उन्हें गायिका-अभिनेत्री सुरैया के साथ १९४८ में फिल्म ‘विद्या’ के लिए साइन कर लिया गया। बकौल सुरैया, ‘एक हफ्ते की शूटिंग भी शुरू हो गई। मगर हीरो का अभी कोई पैâसला नहीं हुआ था। खैर, मैं काम करती गई। शूटिंग करते हुए मेरी निगाहें सेट के एक कोने की तरफ उठ जाती थीं। एक नौजवान का बुत कुर्सी पर बैठा हुआ, पथराई हुई नजरों से मुझे घूरता हुआ, जैसे उसकी पथराई हुई नजरें मेरे रोम-रोम को छू लेने की कोशिश कर रही हों। मैंने प्रोड्यूसर को बुलवाया और कहा, वो ज्यादा ही शरीफ जो उस कोने में धरना दिए बैठे हैं, उन्हें उठवा दीजिए तो मैं काम कर पाऊंगी। वो सीधे उसके पास गए और उन्हें बाहर भिजवाने की बजाय उलटे मेरे पास ले आए। मैं बहुत ही सकपकाई। प्रोड्यूसर साहब मुस्कुराकर फरमाने लगे, ‘इनसे मिलिए, ये हैं हमारे नए हीरो देव आनंद।’ देव आनंद कहने लगे, ‘साहब काम करने से पहले एक नए आदमी को इतनी बड़ी हीरोइन को अच्छी तरह देख लेना चाहिए। गुस्ताखी माफ।’ इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों की निगाहें चार हुर्इं और उनका प्यार परवान चढ़ने लगा। सुरैया की मां बहुत ही दयालु प्रवृत्ति की महिला थीं, लेकिन सुरैया की नानी उनसे बिल्कुल विपरीत सख्त मिजाज थीं। साये की तरह हर पल वो सेट पर उपस्थित रहतीं और उनकी रजामंदी के बगैर पत्ता तक न हिलता। उन दिनों सुरैया बहुत बड़ी स्टार थीं और देव आनंद अपनी पहचान बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे। सुरैया से मिलने के लिए देव आनंद लोकल पकड़कर मरीन ड्राइव उतरते और पैदल चलते हुए सुरैया के घर ‘कृष्णा महल’ पहुंचकर घंटों सुरैया के साथ बिताते। इसी बीच देव आनंद ने महसूस किया कि सुरैया न केवल उन्हें पसंद करती हैं, बल्कि उनसे बेपनाह मोहब्बत भी करती हैं। एक दिन सुरैया की नानी को किसी कारणवश घर जाना पड़ा। तभी मौका देखकर देव आनंद सुरैया के मेकअप रूप में चले गए और उन्होंने सुरैया से अपने प्यार का इजहार कर दिया, जिसे सुरैया ने कबूल कर लिया। अब देव आनंद ने तीन हजार रुपए में एक बहुत ही सुंदर अंगूठी सुरैया के लिए बनवाई और उसे सुरैया के पास भिजवा दी। जब इस बात की खबर उनकी नानी को लगी तो वे आगबबूला हो गर्इं और वो अंगूठी उन्होंने समुद्र में फिंकवा दी। अंगूठी मिलने के बाद भी जब सुरैया की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो देव आनंद तड़प उठे। उन्होंने सुरैया की मां को फोन लगाया। फोन पर सुरैया की मां ने उनसे कहा कि वो सुरैया से उनकी बात करवाएंगी। इसके बाद देव आनंद इस बात की पुष्टि करने के लिए सुरैया से मिले कि क्या सुरैया उनसे विवाह करेंगी। अब इसे नानी का खौफ कहें या डर एक लंबी चुप्पी और इंतजार के बाद भी जब सुरैया की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो देव आनंद गम के सागर में इस कदर डूबे कि अपने बड़े भाई चेतन आनंद के सामने वो अपने पहले प्यार सुरैया के लिए फूट-फूटकर रोए। बड़े भाई चेतन आनंद के समझाने और दिलासा देने के बाद उन्होंने सोचा कि जो चीज निकल गई, उसे दिल से भी निकाल डालो। खैर, इस घटना के बाद देव आनंद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे चलकर उन्होंने जहां कल्पना कार्तिक से विवाह कर लिया, वहीं उन्हें दिल से चाहनेवाली सुरैया ताउम्र कुंवारी रहीं।

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