कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार ।
कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार ।।
परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार ।
गैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार ।।
अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान ।
बहरे थामे न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।।
कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान ।
इंसानो में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान ।।
जब से पैसा हो गया, संबंधों की माप ।
मन दर्जी करने लगा, बस खाली आलाप ।।
दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार ।
धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार ।।
हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुजदिल लोग ।
खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पे लोग ।।
अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज ।
‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महंगे आलू-प्याज ।।
गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल ।
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल ।।
लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार ।
ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज सुबह अखबार ।।
सास ससुर सेवा करे, बहुएं करती राज ।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज ।।
-डॉ सत्यवान सौरभ