राजेश माहेश्वरी लखनऊ
उत्तर प्रदेश की राजनीति में लोकसभा चुनाव की चहल-पहल दिनों दिन तेज होती जा रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों में गुटबाजी और खेमेबंदी की कोशिशें भी जारी हैं। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की सत्ता पर काबिज है। प्रमुख प्रतिद्वंदी के तौर पर समाजवादी पार्टी बीजेपी को सीधी टक्कर दे रही है। यूपी की राजनीति में बड़े दलों के साथ-साथ छोटे दलों की भूमिका काफी प्रभावी रही है। छोटे-छोटे दल विभिन्न जाति वर्गों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। वोट बैंक को प्रभावित करते हैं और चुनावों में हार-जीत का अंतर पैदा कर देते हैं।
प्रदेश की राजनीति में ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जयंत चौधरी के नेतृत्ववाली राष्ट्रीय लोक दल और केशव देव मौर्य के नेतृत्व वाली महान दल की सक्रियता में इजाफा साफ तौर पर देखा जा सकता है। ये तमाम दल कुछ विशेष इलाकों में सक्रिय हैं। ये आसानी से अपने कोर वोट बैंक को बड़े दलों में ट्रांसफर कराने की ताकत भी रखते हैं। इसके अलावा पीस पार्टी, आजाद समाज पार्टी और एमआईएमआईएम भले ही किसी गठबंधन का हिस्सा न हों लेकिन ये दल नतीजों में फेरबदल करने की ताकत तो रखते ही हैं। छोटे दलों की अहम भूमिका और चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता के चलते ही सत्ता पक्ष और विपक्षी गठबंधन छोटे दलों को साथ लाने की कोशिशों में लगे हैं। फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना दल (सोनेलाल), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी है। सुभासपा पूर्वांचल के गैर यादव ओबीसी वोट बैंक में अपना प्रभाव रखती है। वर्ष २०१७ के विधानसभा चुनाव में सुभासपा जब भाजपा के साथ थी तो ओपी राजभर के साथ जुड़नेवाला वाला वोट बैंक पूरी तरह से एनडीए के पाले में आया था। इसका प्रभाव इस क्षेत्र में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन के रूप में सामने आया। लेकिन, यूपी चुनाव में २०२२ में राजभर के अखिलेश यादव के पाले में जुड़ने के बाद पार्टी की स्थिति में बदलाव हुआ। राजभर के साथ चलने वाले वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा भाजपा को छोड़ सपा के पाले में जुड़ा। पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के इस तरफ से चुने जाने के बाद भी भाजपा को इस इलाके में बड़ी सफलता नहीं मिली। ऐसे में सुहेलदेव पार्टी के महत्व को बीजेपी समझती है। इसी के चलते पिछले दिनों ही सुहेलदेव पार्टी को बीजेपी ने अपने साथ दोबारा जोड़ा है। अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी प्रदेश सरकार में शामिल हैं। महान दल ने यूपी की राजनीति में भले ही कोई बड़ी राजनीतिक उपलब्धि नहीं हासिल की हो, लेकिन पार्टी विभिन्न क्षेत्रों में वोट को नुकसान करने की क्षमता रखती है। हाल में ही महान दल का सम्मेलन हुआ। इसमें पार्टी अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने बिना शर्त मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी को समर्थन देने का एलान कर दिया। महान दल की ओर से बसपा को लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने के लिए फर्रूखाबाद, कासगंज, शाहजहांपुर और बदायूं लोकसभा सीटों पर तो अपना अभियान भी शुरू कर दिया है। महान दल ने यूपी चुनाव २०२२ में समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था। वहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में साख रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के एक्शन पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। हाल में रालोद नेताओं के बयान अलग-अलग रहे हैं। अध्यक्ष जयंत चौधरी तो खुलकर कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष समेत तमाम नेताओं ने २०२४ के चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने का संकेत देना शुरू कर दिया है।
समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव २०१७ में कांग्रेस और लोकसभा चुनाव २०१९ में बसपा के साथ गठबंधन किया। २०२२ के विधानसभा चुनाव में सपा ने रालोद, सुभासपा, महान दल के अलावा जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) के साथ गठबंधन किया। छोटे दलों के साथ गठबंधन का फायदा सपा को मिला। पार्टी ने प्रदेश में रिकॉर्ड ३२ फीसदी वोट मिला और सपा १११ सीटें जीतने में सफल रही। सपा के वोट शेयर में उछाल का कारण समर्पित छोटे दलों के वोटर रहे, जो अपने नेता के साथ जुड़े गठबंधन के पक्ष में खड़े दिखे। कुछ यही स्थिति भाजपा से जुड़े दलों की भी है। भाजपा के साथ अपना दल (एस) का गठबंधन पुराना है। यूपी चुनाव २०२२ में निषाद पार्टी भी गठबंधन में आई। इसका असर उन इलाकों में दिखा, जहां इन दलों का प्रभाव है। ऐसे में बड़े दल छोटे दलों की महत्ता को बखूबी समझते हुए लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं।