रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
भाजपा ने इस बार लोकसभा चुनाव में अपने लिए ३७० से ज्यादा सीटें जीतने का और अपने गठबंधन एनडीए के लिए ४०० से ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा है। भाजपा नेता और मौजूदा सरकार के मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उससे वे यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अपनी प्रचंड जीत के लिए पूरी तरह आश्वस्त हैं। हालांकि, यह टारगेट इतना आसान नहीं है। भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में ही कई राज्यों में सेचुरेशन में पहुंच गई थी।
देश की राजनीति में कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता वाया यूपी होकर जाता है। ऐसे में यूपी की अहमियत को बखूबी समझा जा सकता है। भाजपा ने प्रदेश की सभी ८० सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान हालातों में ये टारगेट पूरा होता दिखाई नहीं देता। भाजपा भी इस तथ्य से अनजान नहीं है इसलिए पार्टी ने गठबंधन का विस्तार किया है। पिछले चुनाव में भाजपा के साथ अपना दल सोनेलाल ही गठबंधन का साथी था। इस बार अपना दल के अलावा भाजपा ने रालोद, सुभासपा और निषाद पार्टी के साथ भी गठबंधन किया है। भाजपा ये मानकर चल रही है कि गठबंधन के विस्तार से वो अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगी।
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इंडिया गठबंधन बनकर उभरा है। इस गठबंधन में सपा और कांग्रेस शामिल है। सपा ६३ सीटों पर और कांग्रेस १७ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। समाजवादी पार्टी पीडीए के फॉर्मूले के सहारे चुनाव मैदान में उतरी है, वहीं कांग्रेस के साथ मुस्लिम और दलित वोट बैंक है। सपा-कांग्रेस जिस समझदारी से एक-एक सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा कर रहे हैं, उससे भाजपा के रणनीतिकारों को भी सोचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
२०१९ के चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था। इस गठबंधन ने प्रदेश की ८० में से १५ सीटों पर विजय पताका फहराया था। इस बार बसपा किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। वो अकेले चुनाव में उतरी है। भाजपा अपने कोर वोट बैंक के सहारे है। उसे उम्मीद है कि वो बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगााकर त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हासिल कर लेगी, लेकिन मायावती अपने वोट बैंक की मजबूती में जुटी हैं। वो हर सीट पर ऐसे प्रत्याशियों का एलान कर रही है, जो भाजपा की परेशानी बढ़ाने का ही काम करेगा।
भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती पहले चरण का चुनाव है। यूपी में पहले चरण में जिन आठ सीटों पर चुनाव है, वहां अभी आधे से ज्यादा सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का कब्जा है। २०१९ लोकसभा चुनाव में इन आठ में से तीन सीटों पर बीएसपी और दो पर एसपी ने जीत हासिल की थी। खास बात ये है कि कुछ सीटों पर भाजपा को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। नगीना सीट पर बीएसपी के गिरिश चंद्रा ने भाजपा के यशवंत सिन्हा को सबसे ज्यादा १ लाख ६६ हजार ८३२ वोटों के अंतर से हराया था। इसके अलावा मुरादाबाद से सपा नेता एसटी हसन ने भी करीब ९८ हजार वोटों के अंतर भाजपा उम्मीदवार को हराया था। वहीं बिजनौर में ६९,९४१ वोट और सहारनपुर सीट पर २२,४१७ वोटों से भाजपा को हार मिली थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा पूर्वांचल की भी कई सीटों पर भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। असल में पिछले चुनाव में भाजपा ने ६२ सीटें जीती थीं, और दो सीटों पर अपना दल ने जीत दर्ज की थी। एनडीए के खाते में ६४ सीटें आई थीं, १६ पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा था। ऐसे में इन हारी हुई सीटों पर जीत के लिए उसने फोकस कर रखा है। लेकिन इंडिया गठबंधन का दांवपेच उसके लक्ष्य के पूरा होने में सबसे बड़ी बाधा बनते दिख रहे हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के तमाम नेताओं का दावा है कि इस बार उनकी पार्टी यूपी की सभी ८० लोकसभा सीटें जीतेगी। वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव का दावा है कि इंडिया गठबंधन सभी ८० सीट जीतेगा, भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। खैर, ये तो अब ४ जून २०२४ को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि कौन सी पार्टी सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करेगी। फिलहाल, चुनावी सरगर्मियां और जोड़-तोड़ चरम पर हैं।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)