रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बरकरार रखने को बसपा हरियाणा से लेकर जम्मू-कश्मीर तक के विधानसभा चुनाव में खाता खोलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। हरियाणा में मायावती ने अपना फोकस इसलिए भी बना रखा है, क्योंकि यहां पर २१ प्रतिशत वोट बैंक दलितों का है। दलितों का वोट बैंक ही बसपा को हरियाणा में एक मजबूत दावेदार बनाता है। राज्य में दलितों की आबादी वंचित अनुसूचित जाति और अन्य अनुसूचित जाति के रूप में बंटी हुई है। बसपा को छोड़कर सभी राजनीतिक पार्टियां इन पर अपना हक जताती हैं, लेकिन पिछले ४ चुनावों के आंकड़ों को देखा जाए तो राज्य में बीएसपी का वोट बैंक जरूर बढ़ा या घटा है। इसके अलावा विधानसभा की १७ सीटें आरक्षित हैं और राज्य की ३५ सीटों पर दलित वोटरों का प्रभाव है।
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य है और यहां की परिस्थितियां, मुद्दे जातीय व सियासी समीकरण उत्तर प्रदेश से काफी मिलते-जुलते हैं। इसलिए उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दलों को हरियाणा में सियासत की राह आसान दिख रही है। हरियाणा की राजनीति में अनुभव की बात करें तो बसपा के अलावा यूपी के किसी अन्य क्षेत्रीय दल ने न तो प्रदेश में कोई चुनाव लड़ा है और न उनका संगठन है। २०१९ का विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो बसपा साल २००० से लगातार हरियाणा में एक विधानसभा सीट पर जीत हासिल करती रही है और हर चुनाव में पांच से साढ़े सात प्रतिशत से अधिक वोट भी हासिल किए हैं।
२०१९ के चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई और पार्टी का मत प्रतिशत २०१४ की तुलना में दो प्रतिशत से अधिक गिर गया। अब बसपा की कमान युवा नेता आकाश आनंद के हाथ में है और पार्टी एक बार फिर २१ प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाताओं के सहारे हरियाणा में पैर जमाना चाह रही है। मायावती की सक्रियता कम होने के बाद बसपा का आधार उत्तर प्रदेश में भी कमजोर हुआ है। उसकी जगह आजाद समाज पार्टी अनुसूचित जाति के मतदाताओं के सहारे कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन रालोद की राह मुश्किल है। क्योंकि हरियाणा में कांग्रेस, इनेलो और जजपा तीनों दलों में बड़े जाट नेता हैं। पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने के लिए बसपा प्रमुख मायावती २५ सितंबर से चुनाव मैदान में उतरेंगी। मायावती के भतीजे और पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद वैसे तो पहले से ही हरियाणा के चुनाव में पूरी तरह से सक्रिय हैं, लेकिन उनकी चुनावी सभाएं व चौपाल १८ सितंबर से शुरू हो रही हैं। हरियाणा में जोर-शोर से प्रचार करने के लिए बसपा पहली बार प्रचार वाहन भी तैयार करा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हरियाणा में बसपा सुप्रीमो मायावती बीजेपी का टेंशन बढ़ा सकती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक है, जो चुनाव में खेल बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। वैसे बसपा का रास्ता रोकने और दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए यूपी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी भी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी यानी जजपा से गठबंधन कर चुनाव मैदान में है।