धीरेंद्र उपाध्याय
भारतीय समाज में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना सर्वोपरि रही है। मानव ही नहीं बल्कि प्राणियों के प्रति भी हमारा समाज संवेदनशील रहा है। बदलते परिवेश में यह अक्सर सुनाई देता है कि भारतीय समाज से यह भावना धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता, लेकिन इसी समाज में ऐसे पहरुए भी हैं, जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की मशाल जलाए हुए हैं। उत्तर गौरव में उत्तर हिंदुस्थानी समाज के ऐसे ही पुरोधाओं के जीवन का संघर्ष और संकल्प रेखांकित करने की कोशिश है। नई पीढ़ी के लिए आदर्श स्थापित करने का प्रयास है।
सुबह के वक्त मीरा-भायंदर की सड़कों पर एक समूह घूम रहा होता है। इस समूह के लोग सड़कों पर घूम रहे आवारा भूखे जानवरों को खाना खिलाते हैं, पानी पिलाते हैं और यदि कोई जानवर बीमार अथवा घायल दिखे तो उन्हें प्राणियों के अस्पताल पहुंचाते हैं। इस समूह की हर दिन की शुरुआत सुबह इस नेक कार्य से होती है। सुबह अपने घर की पहली चाय की घूंट ये लोग बाद में पीते हैं। महिलाएं अपने घर के काम से ज्यादा तवज्जो इस पुण्य कार्य को देती हैं। ये सब जीवदया सेनानी हैं, जो जैसल पार्क चौपाटी कल्याण समिति के सदस्य हैं।
वैश्विक बीमारी कोरोना के आते ही सब कुछ अचानक ठप हो गया था। महामारी को नियंत्रित करने के लिए देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था। इस दौरान जो जहां था, वो वहीं फंसा हुआ था। महामारी काल के अनुभव के बारे में आपबीती साझा करते हुए पशुप्रेमी डॉ. नरेंद्र गुप्ता बताते हैं, ‘उस दौर में हम लोग सुबह के समय गरीबों और मजदूरों को मदद के रूप में राशन बांटने के लिए निकले थे। उस समय हमारी नजर बेजुबान पशु-पक्षियों पर पड़ी। उन्हें देखकर मस्तिष्क में एक ही बात कौंध रही थी कि इंसान तो अपना पेट किसी तरह भर लेगा, लेकिन इन बेजुबान पशु-पक्षियों का पेट वैâसे भरेगा? उस समय न तो कहीं कोई दुकान खुली थी और न ही खाने-पीने के होटल-रेस्टोरेंट ही चल रहे थे। इतना ही नहीं, इन बेजुबानों को भोजन देने के लिए भी कोई इंसान घर से बाहर नहीं निकल रहा था। सब कुछ पूरी तरह से बंद था। पशु-पक्षियों की यह स्थिति देख मैंने अपने दोस्तों से बात की। इसके बाद बेजुबान जानवरों के लिए हमने चार लोगों की एक समिति बनाई। इसके बाद सबसे पहले हमने पक्षियों के लिए दाने की व्यवस्था शुरू की। दुकानदारों को फोन करके दाने का प्रबंध किया गया। इसके साथ ही कुत्तों और बिल्लियों के लिए खाने की व्यवस्था की गई। भोजन और दाने का प्रबंध करने के बाद मीरा-भायंदर में क्षेत्रों का बंटवारा करके हमने जानवरों और पक्षियों को खिलाना शुरू कर दिया।’
इस तरह रखा अभियान का नाम
लॉकडाउन के समय पुलिस वाले हमें बाहर नहीं निकलने देते थे। लेकिन कई बार मिन्नतें करने पर वे मान भी जाते थे। इस समस्या को लेकर हम लोग मीरा-भायंदर के मनपा आयुक्त से मिले। उन्होंने एनिमल लवर के तौर पर हमारे लिए आईडी कार्ड का प्रबंध कर दिया। मनपा से आईडी कार्ड मिलते ही हमने ‘जीव दया’ नाम से अभियान शुरू कर दिया। लोग पशु-पक्षियों को भोजन करानेवालों को ‘जीव दया सेनानी’ नाम से संबोधित करने लगे, जो बाद में काफी लोकप्रिय हुआ। महिलाएं, पुरुष और युवा सब साथ मिलकर सड़कों पर लावारिस घूमने वाली गायों समेत मवेशियों को चारा और दाना खिला रहे थे। इतना ही नहीं, कई बीमार मवेशियों और पक्षियों का इलाज भी कराते थे। इसमें पहले से ही मवेशियों को आहार खिलाने वाले लोगों की भी मदद ली गई। इसमें कई डॉक्टरों के साथ ही पुलिस और मनपा की तरफ से काफी सहयोग मिला। इस तरह से यह अभियान निरंतर चलता रहा। इसके बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया लोग इससे जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। आज हमारी समिति में १०० लोगों का एक समूह बन गया है, जिसमें ६० फीसदी महिलाएं हैं।
निरंतर चल रहा अभियान
उन्होंने कहा कि हम निरंतर इस अभियान को चला रहे हैं। इसके तहत हम बीमार और घायल पक्षियों सहित जानवरों का इलाज कराते हैं। हर ‘जीव दया सेनानी’ के पास एक ‘फर्स्ट एड बॉक्स’ हमेशा उपलब्ध रहता है। मामूली तकलीफ में जानवरों का इलाज कर लिया जाता है, लेकिन तकलीफ बड़ी बीमारियों को लेकर होती है। ऐसे में एनिमल डॉक्टर से संपर्क करना पड़ता है, जिसमें कई लोगों की मदद से उनके उपचार पर होनेवाले खर्च का भुगतान किया जाता है।
पशु-पक्षियों के लिए नहीं है कोई व्यवस्था
यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि मीरा-भायंदर मनपा क्षेत्र में घायल पशु-पक्षियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इसे लेकर लगातार हमारी समिति मनपा प्रशासन के साथ फॉलोअप कर रही है। लेकिन अभी तक किसी तरह का ठोस निर्णय मनपा की तरफ से नहीं लिया गया है।
शहर में पशु चिकित्सालय बनाने की कर रहे मांग
जितनी बीमारियां इंसानों में होती हैं, उतने ही रोग कुत्ते-बिल्लियों सहित अन्य जानवरों में भी होते हैं। लेकिन उनके इलाज को लेकर कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में बीमार पक्षियों और जानवरों को इलाज के लिए एंबुलेंस से मुंबई के परेल अथवा उमरगांव स्थित पशु चिकित्सालय ले जाना पड़ता है। इसमें बहुत पैसा खर्च होता है। इस समस्या को दूर करने के लिए मीरा-भायंदर में एक पशु चिकित्सालय बनाए जाने की मांग मनपा प्रशासन से की जा रही है। इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी मदद समिति ले रही है।
जानवरों के दाह संस्कार की भी है समस्या
दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां पशु-पक्षियों की मौत होने पर उनके दाह संस्कार के लिए कोई प्रबंध नहीं है। मनपाकर्मियों को उनकी मौत की सूचना मिलने के बाद वे मौके पर पहुंचते हैं और अन्यत्र ले जाकर फेंक देते हैं। इससे पैâलने वाली बदबू से बीमारी पैâलने का भय बना रहता है। हमारी समिति कोरोना से लेकर अब तक करीब १००-१५० जानवरों को पारंपरिक तरीके से दफना चुकी है। समस्या को लेकर बीते दो सालों से इलेक्ट्रिक दाह मशीन लगाए जाने की भी मांग की जा रही थी। इसके तहत मनपा प्रशासन ने पालतू जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए एक अलग व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया है, जो फिलहाल ठंडे बस्ते में है।
नसबंदी में लापरवाही
मनपा प्रशासन की तरफ से नसबंदी तो की जाती है, लेकिन इस प्रक्रिया में काफी लापरवाही बरती जाती है। मनपाकर्मी कुत्तों को नसबंदी के लिए मनमाने ढंग से ले जाते हैं। कभी-कभी कुत्तों को १०-१५ दिनों के बाद छोड़ा जाता है, जबकि पांच दिनों में उनके मूल स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए। कभी-कभी नसबंदी के बाद भी कई आवारा कुत्ते बच्चों को जन्म देते हैं। इस बारे में शिकायत करने के बावजूद मनपा के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
साल में दो बार होती है संगोष्ठी
मीरा-भायंदर में पशु प्रेमियों के लिए साल में दो बार संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। इसमें मवेशियों की समस्याओं को लेकर उनका हल निकालते हुए नियोजन की कोशिश की जाती है। हालांकि, इसमें राज्य सरकार और मनपा से किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिलती है।
सोसायटियों में होना चाहिए कुत्ते-बिल्लियों के लिए स्थान
शहर की हर सोसायटी में आवारा कुत्तों और बिल्लियों के लिए एक जगह निश्चित होनी चाहिए, ताकि वहां पशु प्रेमी बिना किसी समस्या के उन्हें दाना-पानी दे सकें। हालांकि, सोसायटियां इसे गंभीरता से नहीं लेती हैं। यहां उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है। ऐसे में कुछ दिन पहले ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मिलकर हमने एनिमल क्रुएलिटी पर मामला दर्ज कर कठोर कार्रवाई किए जाने का आग्रह किया है। फिलहाल, उनकी तरफ से सकारात्मक आश्वासन मिला है।
१) गर्मियों में पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करें।
२) होली में जानवरों पर रंग न डालें।
३) दीवाली में जानवरों की पूंछ पर पटाखे न बांधकर जलाएं।
४) कांच वाले मांझों का उपयोग पतंग उड़ाते समय न करें।
जीवदया सेना
डॉ. एम.एल. गुप्ता, भरत अग्रवाल, सुशील पोद्दार, सुमित अग्रवाल, श्रीमती संतोष कुचेरिया, श्रीमती हेमलता सिंह, श्रीमती सरोज चौरसिया, श्रीमती संगीता शेट्टी, पवन अग्रवाल, सुभाष जांगिड, देवकीनंदन मोदी