रोहित माहेश्वरी लखनऊ
उत्तर प्रदेश की जिन १० सीटों पर उप चुनाव होना है, उनमें से ६ सीटों पर ‘इंडिया गठबंधन’ के अहम दल समाजवादी पार्टी ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव नतीजों के अगले दिन ६ सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। समाजवादी पार्टी ने सीसामऊ, कटेहरी, करहल, मिल्कीपुर, फूलपुर और मझवां सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं, जिन चार सीटों पर सपा ने प्रत्याशियों का एलान नहीं किया वो इंडिया गठबंधन के मित्र दल कांग्रेस के खाते में जाने की संभावना है। ये चार सीटें कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर और मीरापुर हैं। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं- वे हैं, गाजियाबाद, मझवां (मिर्जापुर), सीसामऊ (कानपुर शहर), खैर (अलीगढ़), कटेहरी (आंबेडकर नगर), करहल (मैनपुरी), मिल्कीपुर (अयोध्या), मीरापुर (मुजफ्फरनगर), फूलपुर (प्रयागराज) और कुुंदरकी (मुरादाबाद)। इनमें से नौ सीटें लोकसभा चुनाव में सांसद चुने जाने के बाद रिक्त हुई है, जबकि सीसामऊ विधानसभा सीट पर सपा विधायक इरफान सोलंकी की अयोग्यता के कारण रिक्त हुई है और उपचुनाव हो रहे हैं, जिन्हें आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया था।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने करहल सीट से तेजप्रताप को उतारा है, वहीं सीसामऊ विधानसभा सीट से पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को टिकट दिया है, वहीं मिल्कीपुर से अजीत प्रसाद को टिकट दिया है। फूलपुर विधानसभा सीट से मुस्तफा सिद्दीकी को, कटेहरी विधानसभा सीट से शोभावती वर्मा को और मझवां सीट से डॉ. ज्योति बिंद को मैदान में उतारा है, वहीं विधानसभा उपचुनाव के लिए सबसे चर्चित सीट मिल्कीपुर पर अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद पर भरोसा जताया है। सपा और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा आम सहमति से हुआ है या फिर सपा ने अपने नफे-नुकसान के हिसाब से सीटों को चुना है, इसकी जानकारी तो सामने नहीं आई है, लेकिन सूत्रों की मानें तो दोनों दलों के बीच पिछले कुछ समय से उपचुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा हो रही थी। कई दौर की बातचीत भी पार्टी नेताओं के बीच हुई है। २०२२ के विधानसभा चुनाव में करहल, मिल्कीपुर, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी सीटें सपा ने जीतीं, जबकि गाजियाबाद, मझवां, फूलपुर और काहिर ने भाजपा के विधायक चुने। मीरापुर सीट रालोद ने जीती थी। कांग्रेस इन दसों सीटों में से एक भी सीट २०२२ के विधानसभा चुनाव में जीत नहीं पाई थी। सपा ने तो ६ प्रत्याशी घोषित कर अपना पक्ष उजागर कर दिया है।
दूसरी ओर कांग्रेस को लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में सपा की जीत में उसका बड़ा योगदान है, क्योंकि उसकी वजह से मुस्लिम और दलित वोट गठबंधन को मिले हैं इसलिए वह ज्यादा हिस्सेदारी मांग रही थी, लेकिन सपा के ६ सीटों पर उम्मीदवारों के एलान के बाद अब कांग्रेस के लिए चार सीटें ही बची हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सपा का पक्ष था, जिन सीटों पर उपचुनाव होना है उन पर कांग्रेस की दावेदारी कमजोर है। ऐसे में सपा चाहती है कि कांग्रेस एक या दो सीट पर लड़े, लेकिन कांग्रेस बराबर सीट चाहती है या कम से कम चार सीटों पर लड़ना चाहती थी। अगर ये थ्योरी सही है तो इसका मतलब साफ है बिना किसी हो-हल्ले के सपा और कांग्रेस ने सीटों का बंटवारा कर दिया है और चार सीटें सपा ने खाली छोड़ दी हैं।
कांग्रेस की ओर से सपा के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद कोई प्रतिक्रिया या बयान सामने नहीं आया है। माना जा रहा है कि सपा ने गठबंधन का धर्म निभाते हुए कांग्रेस के लिए चार सीटें छोड़ी हैं। वैसे देखा जाए तो लोकसभा चुनाव से लेकर हरियाणा विधानसभा चुनाव तक अखिलेश ने हर बार गठबंधन धर्म निभाने में अग्रणी भूमिका निभाई। अखिलेश के सूझ-बूझ से भरे निर्णय और दूसरे दलों को साथ लेकर चलने की राजनीति उन्हें वर्तमान में तमाम नेताओं की भीड़ में अलग खड़ा तो करती ही है, वहीं उनकी सफलता का राज भी इसमें छिपा है।
भाजपा भी दस सीटों को लेकर तैयारियों में लगी है, उसे उम्मीद थी कि सीटों के बंटवारे को लेकर सपा-कांग्रेस के बीच अनबन और बयानबाजी का लाभ उसे मिलेगा, लेकिन अखिलेश ने बिना किसी शोर शराबे और हो-हल्ले के ६ सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर यह साबित कर दिया है कि वो कितने गंभीर और राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है, जो अपने विरोधी को वॉर करने का एक भी मौका देना नहीं चाहते हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सपा गठबंधन ने भाजपा को धूल चटाई थी। उसी तरह यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन उपचुनाव में बीजेपी के मुकाबले २० ही साबित होगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)