रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
२०२४ का साल यूपी की राजनीति में इंडिया गठबंधन के असरदार और लाभदायी साबित हुआ। लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक दलों समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर भारी साबित हुए। खासकर कांग्रेस के लिए तो साल २०२४ काफी लाभकारी साबित हुआ है। इस साल कांग्रेस ने करीब एक दशक बाद अपने प्रदर्शन में सुधार किया। दरअसल, मोदी लहर के बाद कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक नुकसान का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी ने भी अपनी स्थापना के बाद से लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया।
लोकसभा चुनाव २०२४ में इंडिया गठबंधन ने ४३.५२ फीसदी वोट हासिल किया। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को ४३.६९ फीसदी वोट मिले। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ३७ और कांग्रेस ६ सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। भाजपा महज ३३ सीटें जीत पाई। कभी यूपी की राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में रहने वाली कांग्रेस हाशिए पर जाती दिखी। साल २०२४ में कांग्रेस की इस स्थिति में बदलाव हुआ है। लोकसभा चुनाव २०२४ में कांग्रेस पार्टी ने १७ सीटों पर अपने अपने उम्मीदवार उतारे थे। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के तहत मिली इन १७ में से ६ सीटों पर पार्टी को जीत मिली। २००९ के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। कांग्रेस के इस प्रदर्शन ने पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीदों से भर दिया है। एक बार फिर कांग्रेस लोकसभा चुनाव से मिली संजीवनी से प्रदेश में अपने प्रदर्शन में सुधार और लोगों के बीच पहुंचने की कोशिशों में जुट गई है। विधानसभा सत्र के दौरान योगी सरकार की नीतियों के खिलाफ कांग्रेस का लखनऊ चलो कार्यक्रम इसी कड़ी का हिस्सा रहा। पार्टी ने २०२७ विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
लोकसभा चुनाव २०१९ में भी कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा। समाजवादी पार्टी को भी इस चुनाव में १८.१ फीसदी वोट मिले, लेकिन वह ५ सीटों के आंकड़े को पार नहीं कर पाई। कांग्रेस महज ६.३६ फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही। लोकसभा चुनाव २०१९ में कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए। पार्टी केवल रायबरेली सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। समाजवादी पार्टी और बसपा गठबंधन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। भाजपा ने ४९.९८ फीसदी वोट हासिल करते हुए ८० में से ६२ सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद बहुजन समाज पार्टी ने इस चुनाव में १९.४३ फीसदी वोट हासिल करते हुए १० सीटें जीती। इस चुनाव में कांग्रेस अकेले चुनावी मैदान में थी।
समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले ने भाजपा को पटखनी दी है। अब सपा पीडीए पंचायत आयोजित करने जा रही है, जिससे २०२७ के विधानसभा चुनाव की राह आसान की जा सके। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल हर जिले में जाकर पीडीए पंचायत की अध्यक्षता करेंगे। इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने पीडीए पंचायत आयोजित की थी, जिसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव गए थे। समाजवादी पार्टी का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले सभी जिलों में कम से कम पांच-पांच बार पीडीए पंचायत आयोजित करवा ली जाए। इस दिशा में काम करते हुए एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा २०२७ के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लड़ती है, तो यूपी की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है। ब्राह्मण और दलित वोटों को सीधे तौर पर सपा के पक्ष में लाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन इन वोटों को आकर्षित कर सकता है। कांग्रेस और सपा जिस तरह समझदारी से प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं, उससे एक बात साफ है कि इससे भाजपा की राजनीति सिमटना तय मानी जा रही है। कांग्रेस भी लगातार प्रदेश सरकार की नाकामियों और जन समस्याओं को लेकर मुखरता दिखा रही है, जिससे प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल बना है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि २०२४ ने समाजवादी पार्टी को नई पहचान और राजनीतिक ऊर्जा दी है। हालांकि, उपचुनावों में कमजोर प्रदर्शन और भविष्य की चुनौतियां पार्टी के लिए सबक हैं। अगर सपा सामाजिक समीकरणों को सही ढंग से साधने और गठबंधन राजनीति में सही फैसले लेने में सफल होती है, तो २०२७ में पार्टी यूपी की राजनीति में नया अध्याय लिख सकती है।