मुख्यपृष्ठराजनीतिउत्तर की बात : भाजपा के सामने चुनौतियों का अंबार

उत्तर की बात : भाजपा के सामने चुनौतियों का अंबार

रोहित माहेश्वरी
लखनऊ

यूपी में पहले चरण में ८ लोकसभा सीटों पर चुनाव होने हैं, जिसमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीट शामिल हैं। रुहेलखंड क्षेत्र की तीन सीटें हैं तो पांच सीटें पश्चिमी यूपी के इलाके की हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस इलाके में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। भाजपा को महज तीन सीटें ही मिली थीं, जबकि सपा-बसपा गठबंधन पांच सीटें जीतने में सफल रहा। सपा ने दो और बसपा ने तीन सीटें जीती थीं। हालांकि, बाद में रामपुर सीट उपचुनाव में भाजपा जीतने में सफल रही।
भाजपा की हारी हुईं १४ सीटों में से चार-सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और मुरादाबाद सीटों पर पहले चरण में चुनाव होगा। भाजपा ने बिजनौर सीट एनडीए गठबंधन में अपने सहयोगी रालोद को दी है। पहले चरण में रामपुर सीट पर भी चुनाव होगा। यद्यपि भाजपा ने उपचुनाव में रामपुर सीट जीत ली थी, लेकिन पार्टी ने इस सीट को भी अपने लिए चुनौतीपूर्ण मानते हुए ‘रेड जोन’ में रखा है। इस आधार पर पहले चरण की आठ में से पांच सीटें भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हैं।
२०१९ के चुनाव में हुए सियासी नुकसान की भरपाई के लिए इस बार भाजपा ने आरएलडी को अपने साथ मिला लिया है। इस तरह पहले चरण के चुनाव में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी की अग्निपरीक्षा होनी है, क्योंकि सीट बंटवारे में मिली उन्हें दो सीटों में से एक सीट पर पहले चरण में चुनाव है। भाजपा की कोशिश २०१४ की तरह क्लीन स्वीप करने की है, वहीं सपा और बसपा इस बार अलग-अलग चुनावी मैदान में हैं। सपा ने कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन कर रखा है तो बसपा अकेले चुनावी मैदान में उतरी है। ऐसे में सपा और बसपा दोनों के सामने २०१९ में जीती हुई सीटों को बचाए रखना चैलेंज है।
सपा ने पहले चरण में सोची-समझी रणनीति के तहत कैंडिडेट्स उतारे हैं। मुस्लिम बहुल बिजनौर और मुजफ्फरनगर सीट पर हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें एक जाट और एक दलित समुदाय से है। इसके पीछे वजह यह है कि सपा का कोर वोट बैंक यादव पश्चिमी यूपी में नहीं है, जिसके चलते सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर टिका है। सपा इस बात को अच्छे से समझ रही है कि सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता है, जिसके चलते गैर-मुस्लिम पर दांव खेला है।
पश्चिमी यूपी बसपा का मजबूत गढ़ माना जाता है। बसपा ने २०१९ में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे सहारनपुर, बिजनौर और नगीना सीट जीतने में सफल रही थी। मायावती इस बार अकेले चुनाव लड़ रही हैं, जिसके चलते चुनौती भी बहुत ज्यादा है। सपा लगातार बसपा को भाजपा की बी-टीम बताने में जुटी है, ताकि मुस्लिम वोट न जुड़ सके। ऐसे में देखना है कि मायावती किस फॉर्मूले से भाजपा गठबंधन और सपा-कांग्रेस के गठबंधन से मुकाबला कर पाती हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, लोकसभा के चुनाव में भाजपा के लिए पहला चरण सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण तो है ही, लेकिन इस चरण में कुछ सीटों पर पार्टी को अपनों से भी चुनौती मिल रही है। आगे के चरणों वाली सीटों पर भी खींचतान मची हुई है। पार्टी को इन सीटों पर अंतर्विरोधों से पार पाना होगा।
गाजियाबाद सीट पर केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह लोकसभा चुनाव के मैदान में नहीं हैं। वे लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें चुनाव न लड़ाने का फैसला किया है। उनकी जगह भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे गाजियाबाद के विधायक और पूर्व राज्य मंत्री अतुल गर्ग को भी बीते दिनों पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है। गाजियाबाद की तरह पीलीभीत सीट पर अंदरखाने मनमुटाव की चर्चा है। भाजपा नेतृत्व को भी इसका कहीं न कहीं भान है इसलिए पार्टी ने अपने दिग्गज नेताओं को पीलीभीत फतह के लिए मोर्चे पर लगाया है। क्षत्रिय मतदाताओं की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ती दिख रही है। पहले चरण के अलावा अन्य चरणों की सीटों पर भी क्षत्रिय वोटरों की नाराजगी का असर भाजपा के प्रदर्शन पर पड़ना लाजिमी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी समीकरण २०१९ से अलग हैं, लेकिन सपा-बसपा ने जिस तरह का तानाबाना बुना है, उससे भाजपा के लिए कड़ी चुनौती है। क्षत्रिय समुदाय की नाराजगी अगर ऐसी ही बरकरार रही तो भाजपा के लिए अपनी सीटें बचाए रखना मुश्किल होगा।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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