मुख्यपृष्ठस्तंभउत्तर की बात : नारों की कश्ती पर सवार राजनीतिक दल

उत्तर की बात : नारों की कश्ती पर सवार राजनीतिक दल

रोहित माहेश्वरी लखनऊ
यूपी उपचुनाव को २०२७ का सेमीफाइनल माना जा रहा, जिसके चलते बीजेपी से लेकर सपा और बसपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है। उत्तर प्रदेश का उपचुनाव मिनी विधानसभा चुनाव की तरह लड़ा जा रहा है। यूपी की जिन ९ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है, उसमें मीरापुर, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, करहल, कटेहरी, सीसामऊ, फूलपुर और मझवां सीट है।
सपा ने सभी ९ सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो बीजेपी ८ सीट पर खुद चुनाव लड़ रही है और एक सीट पर उसकी सहयोगी आरएलडी किस्मत आजमा रही। बसपा ने भी इस बार उपचुनाव में ताल ठोक रखी है। २०२२ के चुनावी नतीजों के लिहाज से देखें तो चार सीटों पर सपा के विधायक तो तीन सीट पर बीजेपी के विधायक थे। आरएलडी और निषाद पार्टी के एक-एक विधायक थे।
चुनावी मौसम आए तो नारों की बयार भी खूब बहती है। कम शब्दों में अपनी बात को प्रभावी ढंग से इन्हीं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है। बड़ी संख्या में लोगों को नारों के माध्यम से ही राजनीतिक दल अपनी बात समझाते हैं। कोई भी चुनाव हो तो उसके तमाम नारे लोगों के मन-मस्तिष्क पर छाते व भाते हैं। वे न केवल सत्ता के द्वार खोलने का जरिया बनते हैं, बल्कि बाहर करने में भी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। इस बार भी भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के मंचों से नारे गूंज रहे हैं।
इन दिनों यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार पूरे उफान पर है। उपचुनाव में भी लड़ाई का जरिया नारे बने हुए हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी और बसपा तीनों दलों ने अपने-अपने वोट आधार का गुणा-भाग करके चुनावी नारों को गढ़ा और धार दी है। एक तरह से यह नारों की लड़ाई बन गई है।
उपचुनाव में वैसे भी कई बड़े मुद्दे नहीं होते हैं। सबको पता है कि इनके नतीजों से राज्य की सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ना है, तभी स्थानीय मुद्दों और बड़े नारों के आधार पर उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा जा रहा है। सबसे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही नारा आता है, जो उन्होंने पिछले महीने हुए दो राज्यों के चुनावों में कई बार दोहराया। उनका नारा है, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’।
भाजपा इसी नारे पर हिंदू समाज को एकजुट करके चुनाव लड़ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी मथुरा की अपनी एक अखिल भारतीय बैठक के बाद योगी के इस नारे को अपना समर्थन देने का एलान किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस लाइन पर पांच अक्टूबर को महाराष्ट्र में कहा था कि ‘बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे’ और बाद में दिवाली के एक कार्यक्रम में कहा कि ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’।
बीजेपी के इस नारे के जवाब में सपा ने पोस्टर लगाया था, ‘मठाधीश बाटेंगे और कांटेंगे। पीडीए जोड़ेगी और जीतेगी। वहीं समाजवादी पार्टी ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नारा भी दिया है। देवरिया जिले के सपा कार्यकर्ता विजय प्रताप यादव ने लखनऊ में पार्टी कार्यालय के बाहर एक होर्डिंग लगाई, जिसमें लिखा था, ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’। सपा कार्यकर्ता रंजीत सिंह द्वारा लगाए गए तीसरे पोस्टर पर लिखा है, ‘न बाटेंगे, न काटेंगे, २०२७ में नफरत करने वाले हटेंगे। हिंदू मुस्लिम एक रहेंगे तो नेक रहेंगे।’
वैसे देखने में दोनों नारों का एक ही मतलब है कि बंटना नहीं हैं। जुड़े रहेंगे तो बचेंगे या जीतेंगे या आगे बढ़ेंगे, लेकिन दोनों अलग-अलग नजरिए से यह नारा लगा रहे हैं। भाजपा को जहां हिंदू मतदाताओं को बंटने नहीं देना है, वहीं सपा को हिंदू और मुस्लिम को जोड़ना है।
इस बीच बहुजन समाज पार्टी ने भी नारा दिया। उसका नारा है, ‘बीएसपी से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे’। जाहिर है, बसपा ने सबको जोड़ने और २००७ की तरह का समीकरण बनाने का प्रयास किया है, जिसमें दलित और ब्राह्मण के साथ मुस्लिम भी जुड़े थे। वे सबसे पहले अपने दलित वोट को एक करना चाहती है, जो इस बार लोकसभा चुनाव में बिखरा है। तीनों पार्टियां अपने वोट आधार को ध्यान में रख कर चुनाव लड़ रही हैं।
सपा लोकसभा की तरह उपचुनाव में भी पीडीए फॉर्मूले के सहारे उतरी है, तो बीजेपी ने ओबीसी पर दांव खेलकर अखिलेश यादव की रणनीति को काउंटर करने का ताना-बाना बुना है। असल में यूपी उपचुनाव में जिस तरह सभी दलों ने ओबीसी पर दांव खेल रखा है और ओबीसी वोटों को ही साधने की कवायद में हैं। बीजेपी और सीएम योगी ने जातियों में बंटे हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए नारा दिया है, ‘बंटोगे तो कटोगे’। अब यह देखना अहम होगा कि बीजेपी, सपा और बसपा किसका नारा चुनाव नतीजों पर असर डालेगा।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के
जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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