रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अभी दो साल से ज्यादा का समय शेष है, लेकिन जमीनी स्तर पर २०२७ के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इन तैयारियों में समाजवादी पार्टी सबसे आगे दिखाई देती है। पार्टी की ओर से जमीन पर पार्टी को मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है। पार्टी का पूरा ध्यान अपने आजमाए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए फॉर्मूले को जमीन पर बनाए रखने पर है। लोकसभा चुनाव में पीडीए पॉलिटिक्स ने अखिलेश यादव को भारतीय जनता पार्टी पर बढ़त दिला दी। हाल ही में प्रदेश की कई विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को बढ़त मिली है। इसके बावजूद विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की कोशिश भाजपा की तमाम राजनीति पर पार पाने की है। पार्टी की कोशिश भाजपा की `बंटेंगे तो कटेंगे’ वाली राजनीति से आगे निकलने की है। बीते दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक टीवी चैनल पर आयोजित कार्यक्रम में `बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे पर बड़ा दावा किया है।
अखिलेश यादव ने कहा, `बंटेंगे तो कटेंगे’ और `एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों के जरिए लोगों के मुद्दों को दबाया नहीं जा सकता है। बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दों को जमीनी स्तर पर उठाया जाएगा। हम पीडीए समाज को सक्षम बनाने के लिए जातिगत जनगणना की बात करेंगे। समाजवादी पार्टी ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के सहारे २०२४ के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी चुनौती दी थी, जहां पार्टी को ३७ सीटों पर जीत मिली थी। सपा की सहयोगी कांग्रेस ने भी छह लोकसभा सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ६४ सीटों से घटकर ३३ सीटों पर सिमट गई थी। लोकसभाा चुनाव परिणाम यह बता रहे हैं कि सपा व कांग्रेस ने बसपा के वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी की है। पार्टी ३४ सीटों पर आगे चल रही है, उसे ३३.०२ प्रतिशत वोट मिले हैं। वर्ष २००४ में उसे सबसे अधिक ३५ सीटें मिली थीं उस समय भी उसे मात्र २६.७४ प्रतिशत ही मत मिले थे। वर्ष २०२२ के विधानसभा चुनाव में भी उसे ३२ प्रतशित वोट मिले थे, इस बार उससे भी अधिक मत मिले हैं। असल में अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में अपने मूल मतदाता एमवाई (मुस्लिम-यादव) को आधार बनाए रखने के साथ ही गैर-यादव ओबीसी व दलित वोट बैंक पर खास फोकस किया।
सपा ने इस बार ६२ सीटों में से यादव बिरादरी के केवल पांच उम्मीदवारों को टिकट दिया था। २०१९ में १० व २०१४ में १२ यादवों को टिकट दिया गया था। सर्वाधिक १० टिकट कुर्मी व पटेल बिरादरी को दिए, जिसका उसे लाभ भी मिला। सपा ने इस बार दलित १७ प्रत्याशी उतारे हैं। मेरठ व अयोध्या सामान्य सीट पर भी दलित कार्ड खेलकर भाजपा को खूब छकाया। पार्टी ने केवल चार मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया और चुनाव में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण न हो जाए इसलिए मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर हिंदू उम्मीदवार उतारे। गैर यादव पिछड़ी जातियों में सपा ने निषाद व बिंद समाज के भी तीन प्रत्याशियों को टिकट दिया था।
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने भी अपने उम्मीदवारों के चयन में `पीडीए’ का समीकरण साधने की कोशिश की। बीजेपी के पीडीए में `ए’ का मतलब `अगड़ा’ है, जबकि समाजवादी पार्टी में `ए’ का मतलब `अल्पसंख्यक’ है। चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, उपचुनाव में सपा की उम्मीद के विपरीत प्रदर्शन पर ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि अखिलेश यादव का पीडीए फ्लॉप हो गया है। सपा ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों की रफ्तार बढ़ा दी है। सपा नेतृत्व का मानना है कि पीडीए के फॉर्मूले को देश की जनता स्वीकार कर रही है इसलिए सपा इसी फॉर्मूले के साथ आगे बढ़ेगी। आने वाले चुनाव में भाजपा को शिकस्त यही फॉर्मूला ही देगा। अगर पीडीए का फॉर्मूला लोकसभा चुनाव की तरह हिट रहा तो भाजपा का सत्ता से बाहर होना तय माना जाएगा।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)