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म्हारी छोरियां छोरों से कम है के! बेहतर प्रदर्शन के बावजूद वेतन में महिलाओं के साथ होता है भेदभाव

अभिषेक कुमार पाठक

आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ में छोरियों को बड़ी बहादुरी से कुश्ती के क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करते दिखाया गया है। वैसे तो हमारे देश में रोजाना स्त्री-पुरुष समानता की बातें की जाती हैं, पर व्यवहार में देखें तो काफी फर्क है। खासकर महिलाओं की आय के बारे में चर्चा की जाए तो पुरुषों के मुकाबले वह काफी कम है। एक अध्ययन में पाया गया कि लिंगभेद अभी भी सभी क्षेत्रों में प्रदूषण की तरह फैला हुआ है। हिंदुस्थान में लैंगिक अंतर देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत मजदूरी या कमाई के अंतर को दर्शाता है। संवैधानिक प्रावधानों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के विभिन्न प्रयासों के बावजूद, देश में लैंगिक वेतन अंतर एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
नेशनल स्टैटिस्टिकल द्वारा निकाली गई एक रिपोर्ट ‘वीमेन एंड मेन इन इंडिया-२०२२’ के अनुसार, पिछले एक दशक में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन असमानता बढ़ी है। उच्च वेतन स्तरों पर अंतर और अधिक बढ़ गया है। रिपोर्ट में जारी वैश्विक आय में लैंगिक असमानता के पहले अनुमान के अनुसार, हिंदुस्थान में पुरुषों का ८२ फीसदी श्रम आय पर कब्जा है, जबकि महिलाओं का सिर्फ १८ फीसदी पर है।
फिल्मोद्योग से उठी आवाज
लैंगिक वेतन असमानता को दूर करने के लिए, इस बारे में अधिक जागरूकता की जरूरत है। चाहे फिल्म उद्योग हो या कोई अन्य क्षेत्र, यह हर जगह मौजूद है। भेदभाव दुनिया भर में लैंगिक वेतन असमानता के पीछे सबसे बड़ा कारक है।
महिलाओं द्वारा कई बार अन्य सेक्टरों से सामान्य पे (बराबर वेतन) की मांग बढ़ती जा रही है। महिलाएं समान वेतन की मांग कर रही हैं। अभिनेत्री सामंथा रुथ प्रभु ने एक बेहद सफल वेब सीरीज ‘फैमिली मैन’ से डेब्यू किया था। हाल ही में फिल्म इंडस्ट्री में वेतन समानता के मुद्दे पर उन्होंने अपनी बात रखी थी। मीडिया के साथ बातचीत के दौरान अभिनेत्री ने जोर देकर कहा कि समान वेतन के लिए भीख नहीं मांगनी चाहिए।
शिक्षा दर भी कारण
ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार अपने बेटों के लिए उच्च शिक्षा को ज्यादा महत्व देते हैं। इसका मतलब है कि लड़कियों को स्कूल और कॉलेजों में जाने और अपना कौशल विकसित करने का अवसर बहुत कम या नहीं मिलता है।
भेदभाव का करना पड़ता है सामना
महिलाओं को काम पर रखने, प्रमोशन और भुगतान में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, भले वह अपने साथ काम कर रहे पुरुष साथी के साथ योग्यता और अनुभव में बराबर हो। वहीं बच्चों या बुजुर्ग रिश्तेदारों की देखभाल के लिए महिलाओं द्वारा समय निकालने या पार्ट-टाइम काम करने की संभावना अधिक होती है, जिससे उनके करियर के रास्ते में रुकावट आ सकती है और उनकी कुल कमाई कम हो सकती है।
बदलाव की जरूरत
सरकार को मौजूदा कानूनों को मजबूत बनाना चाहिए और काम करनेवाली जगह पर हो रहे इस तरह के भेदभाव को रोकने के लिए नया कानून लाना चाहिए। समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६ को समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने के लिए सख्ती से लागू किया जाए और महिलाओं को इस बारे में जागरूक करते रहें, ताकि वे अपने लिए आवाज उठा सकें ।

 

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