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सेना तैयार; मोदी समर्थ!

पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का बदला वैâसे लेना है, इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं को पूर्ण अधिकार दे दिए हैं। पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की जिम्मेदारी सेना को सौंपी गई है। अब समय और लक्ष्य क्या होगा? यह भी तय करने का अधिकार सैन्यबलों को दिया गया है। पाकिस्तान के संदर्भ में क्या कदम उठाना है, इसका निर्णय प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर स्वयं भी ले सकते थे। आखिरकार, मोदी प्रधानमंत्री हैं और वे लगातार पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते आए हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान के विषय में आक्रामक रुख दर्शाते हैं और घर में घुसकर मारने की बात पर दृढ़ मत रखते हैं। लेकिन अब जब निर्णय लेने की बारी आई, तब भारतीय सेना को पूरी छूट दे दी गई। घर में घुसकर मारना है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। १९७१ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल सैम मानेकशॉ को सुबह बैठक में बुलाकर मार्च में ही पाकिस्तान पर हमला करने का आदेश दिया था, लेकिन जनरल मानेकशॉ ने तत्काल इनकार कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री को साफ कहा कि सेना युद्ध के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं है। इंदिरा गांधी इससे नाराज हुईं। ‘मौसम, हवा, बर्फ और अन्य हालातों के कारण परिस्थिति अनुकूल नहीं’ बताते हुए मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी से छह महीने का समय मांगा और सौ प्रतिशत जीत की गारंटी दी। वही युद्ध मानेकशॉ के नेतृत्व में लड़ा गया और उसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई। पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और यह निर्णय इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति के बल पर लिया था। युद्ध कहां और वैâसे लड़ा जाएगा, इसके सभी अधिकार प्रधानमंत्री गांधी ने सेनाप्रमुखों को दिए, लेकिन युद्ध होगा, यह निर्णय उनका था। अब
युद्ध करना है या नहीं,
यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सेना पर छोड़ दिया है। दिल्ली में लगातार उच्च स्तरीय बैठकें चल रही हैं। कश्मीर घाटी में पर्यटकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ४८ पर्यटनस्थलों को बंद करने का निर्णय अब गृह मंत्रालय ने लिया है। इसका मतलब कि सरकार को कश्मीर में जानेवाले लोगों की सुरक्षा को लेकर पूरा भरोसा नहीं है। कश्मीर पूरी तरह सुरक्षित है और आतंकवादमुक्त हो चुका है, सरकार जो लगातार कह रही थी, वह सच नहीं था। पर्यटन स्थल बंद करने का निर्णय जम्मू-कश्मीर सरकार ने लिया है, लेकिन कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के ‘स्लीपर सेल’ फिर से सक्रिय होने की जानकारी केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने दी है। जानकारी मिली है कि आतंकी गतिविधियां होनेवाली हैं और कुछ प्रमुख नेताओं की जान को भी खतरा है। पहलगाम हमले के बाद आतंकवादी हमारे सुरक्षा बलों पर हमले करने की योजना बना रहे हैं, ऐसी जानकारी भी खुफिया विभाग को मिली है। खुफिया एजेंसियों का यह कार्य सराहनीय है, लेकिन सिर्फ उन्हें पहलगाम हमले की पूर्व सूचना नहीं मिली और उससे पहले पुलवामा हमले की भी खबर नहीं मिली थी। ऐसा क्यों हुआ? इसकी गंभीरता से जांच होना आवश्यक है। पहलगाम का आतंकवादी हमला भुलाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान एक कमजोर और लाचार देश है। वहां धर्मांध गिरोहों के हाथ में सत्ता की बागडोर है। पाकिस्तान की राजनीति पर सेना का दबदबा है। वहां चुनाव आदि केवल दिखावा हैं। किसे विजयी बनाना है और किसे जेल भेजना है, इसका निर्णय सेना करती है। सेना ने पाकिस्तान में कई बार सरकारों को पलट दिया और खुद हाथ में सत्ता ले ली, लेकिन इन पाकिस्तानी सैनिकों को वास्तविक युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों के सीने पर ढेरों पदक और फीते लटकते देख हैरानी होती है। ये पदक और फीते हासिल करने के लिए वे
कब और कौन सी युद्धभूमि में
गए। पाकिस्तानी सेना का पूरा समय राजनीति में ही व्यतीत होता है। ऊपर से वहां की सेना भ्रष्टाचार से खोखली हो चुकी है, वह अलग ही। ऐसे में पाकिस्तानी सेना बेवजह शेखी न बघारे। भारतीय सेना में निष्ठा, नीति, संयम और शौर्य का अद्भुत संगम है। इन्हीं गुणों के बल पर भारतीय सेना किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान से निपटने के पूर्ण अधिकार सेना को देकर ठीक किया है। स्वयं नरेंद्र मोदी को भी प्रत्यक्ष युद्धभूमि पर और भूमिगत होकर काम करने का अनुभव है। उन्होंने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह किया था और इस आंदोलन के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इस बात का उल्लेख स्वयं मोदी ने किया है। अर्थात, मोदी को देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय भागीदारी का अनुभव है। पाकिस्तान के साथ संभावित युद्ध में मोदी का अनुभव काम आ सकता है। बांग्लादेश युद्ध के समय मोदी की उम्र २०-२२ वर्ष रही होगी। आज वे ७५ वर्ष के हैं, मतलब राजनीतिक निवृत्ति होने के कगार पर है। जाते-जाते वे बचे हुए पाकिस्तान के चार टुकड़े कर दें तो इतिहास में अपना नाम अमर कर जाएंगे इसलिए पूरे देश को मोदी के पीछे एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए। कश्मीर को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की जा रही है, लेकिन जब सर्वदलीय बैठक में मोदी अौर उनकी नीति को भरपूर समर्थन मिल चुका है तो अलग से अधिवेशन बुलाकर क्या हासिल होगा? मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के अधिकार सेना को दिए हैं इसलिए अब कश्मीर का क्या होगा? या पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे क्या? इस प्रकार के सवाल पूछकर विपक्ष को मूर्खता नहीं करनी चाहिए। हमारी सेना सक्षम है और जब सेना फतह कर चुकी होगी, तब प्रधानमंत्री मोदी का असली काम शुरू होगा!

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