पी.जायसवाल
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चहुंओर चर्चा के बीच मैंने भी सोचा कि चलो एक बार मैं भी एक एआई आधारित चैटवाले वेबसाइट पर कोशिश करके देखता हूं। मैंने एक घटना के बारे में जब उस पर सवाल किया, तो उसका जो जवाब उसने दिया, वह पूरी तरह मनगढंत और तथ्यों से परे था। उस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले चैट ने अपनी तरफ से ऐसी कहानी बनाकर सुनाई कि जैसे लगा कि वह सच है। मैंने दो से तीन बार रीजेनरेट किया कि शायद सही उत्तर आए लेकिन हर बार उसी तरह की मिलती-जुलती मनगढ़ंत कहानी सामने आई। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यह चैट वेबसाइट ऐसा लग रहा था जैसे हर बार मनगढ़ंत कहानियां सुनाने वाला कोई चोर है, जो पुलिस द्वारा पकड़ा गया है। संकट यहां है कि यह तथ्य तो ऐसा था, जिसे मैं और सब लोग जान रहें हैं कि क्या सच है, लेकिन पिछली कुछ चीजों पर कुछ लिखने को आया होमवर्क, निबंध आर्टिकल या कोई और भी चीज। यदि हमारे लोग, छात्र और युवा इस मशीन का इस्तेमाल करने लगे जो अप्रामाणिक सूचनाओं के आधार पर होगा तो कैसे उनका बौद्धिक विकास होगा। इसलिए मेरा मानना है कि मनगढ़ंत कहानियों तक तो ठीक है लेकिन किसी तथ्यात्मक जानकारी के लिए इसका सहारा लेना खतरे से खाली नहीं है। यह तो हुआ इसकी विश्वसनीयता पर सवाल। दूसरा बड़ा खतरा जो है, वह है अनजाने में बिना विश्वसनीयता पर ध्यान दिए बड़े पैमाने पर ज्ञान वाले पेशे में इसका इस्तेमाल। इसीलिए गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी कहा है कि इससे लेखक, आर्किटेक्ट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर जैसे लोग जो ज्ञान पर आधारित काम करते हैं, उनका काम प्रभावित हो सकता है। बकौल सुंदर पिचाई, समाज को एआई से जुड़े नियम-कानूनों को फॉलो करना चाहिए और इसके प्रति जिम्मेदार बनना चाहिए। सुंदर पिचाई ने यह भी चेताया कि जेनेरेटिव एआई का इस्तेमाल कर डीपफेक वीडियो बनाए जा सकते हैं और इन डीपफेक वीडियो का समाज पर खतरनाक प्रभाव पड़ सकता है। यहां हम एआई के रोजगार पहलू के अलावा बात करेंगे क्योंकि उस पर पहले बहुत बात हो चुकी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा रचित रचना में कोई रचनात्मकता नहीं है और इसका एक बड़ा नुकसान यह है कि यह आउट ऑफ बॉक्स नहीं सोचता है। यह लोगों को सोचने की मेहनत और रचनात्मकता से दूर धकेल सकता है। यह समय के साथ प्री-फीड डेटा और पिछले अनुभवों के साथ सीखने में सक्षम है, लेकिन इसके दृष्टिकोण में रचनात्मकता नहीं है। सबसे ज्यादा खतरा पढ़नेवाले बच्चों के साथ है। उन्हें भूल के भी इस चैट या एआई से दूर रखें, जब तक वह पढ़ रहें हैं, क्योंकि यह दिमाग के इस्तेमाल को एकदम से कम कर सकते हैं अन्यथा हमारे बच्चे होमवर्क इसी से करने लगेंगे। एआई का जो दूसरा सबसे बड़ा नुकसान है कि यह नैतिक और संवेदनशील नहीं है। यह पूरा मशीनी है और इसमें दिमाग नहीं लगता है। अगर कई निर्णयों में इसकी सहायता शुरू कर दी गई तो यह मानव के नैतिक और संवेदनशील गुणों से इतर निष्ठुर और कई बार अनैतिक सुझाव भी दे सकता है। इस प्रकार इसका प्रयोग कई तरह से दोषपूर्ण हो सकता है, क्योंकि पारदर्शिता और नैतिक बल का इसमें अभाव है। इसमें जानबूझकर त्रुटिपूर्ण इनपुट डेटा भरा जा सकता है या सही सूचना को खराब तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। या जो इसे बना रहें हैं, वे जाने-अनजाने में अपने अनुसार सुविधाजनक या पक्षपाती डेटा फीड कर सकते हैं। यह पूर्वाग्रह से भी भरा हो सकता है। डिजाइन की खामियां, दोषपूर्ण और असंतुलित डेटा जो एल्गोरिदम में फीड किया जा रहा है, पक्षपाती सॉफ्टवेयर आदि कई चीजें सामाजिक एवं अन्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं। एआई का इस्तेमाल व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित कर सकता है। लोग सटीकता से जान सकते हैं कि आपका अगला कदम क्या होगा, आप और आपका परिवार कहां जाने वाला है? अपराधी भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, जो इंटेलिजेंस भगवान ने एक-एक व्यक्ति के दिमाग में भरी थी, वह अब मशीन के रूप में सार्वजनिक हो गया है। गुप्त जैसी कोई चीज रह ही नहीं गई है। हर तरह का पैटर्न खोजने के लिए एल्गोरिदम विकसित किए जा रहें हैं। इससे नुकसान हो सकता है। आप सोचते होंगे कि आखिरकार, आपके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। अगर आप कुछ भी गलत या अवैध नहीं करते हैं, तो भी हो सकता है कि आप नहीं चाहेंगे कि आपकी और आपके परिवार की पसंद ना पसंद, अगला एक्शन आदि जैसी व्यक्तिगत जानकारी बड़े पैमाने पर उपलब्ध हो। एकाधिकार का भी खतरा है। एआई में बड़ी टेक कंपनियों का दबदबा है। बड़ी कंपनियां छोटे एआई स्टार्टअप्स को खत्म कर रहीं हैं। सर्च, सोशल मीडिया, ऑनलाइन रिटेल और ऐप स्टोर में प्रभुत्व के साथ, इन कंपनियों का उपयोगकर्ता के डेटा पर लगभग एकाधिकार है। शक्ति का ऐसा संकेंद्रण खतरनाक है, वे बाजार को मनचाहे तरीके से मोड़ सकते हैं। यहां तक कि सरकारों और प्रशासन को भी प्रभावित किया जा सकता है। इसलिए अगर सुंदर पिचाई कह रहे हैं कि समाज को एआई से जुड़े नियम-कानूनों को फॉलो करना च्ााहिए और इसके प्रति जिम्मेदार बनना चाहिए तो सही कह रहे हैं। सरकार को भी दूरगामी सोचकर इस बारे में कानून बनाना चाहिए। निजता के साथ साथ यह बौद्धिक विकास क्रम पर भी हमला है, जिसने इंसानों को यहां ला खड़ा किया है।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)