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ज्ञानवापी का ‘अज्ञान’ दूर करना चाहती है एएसआई! … विवादित परिसर में मांगी गई खुदाई की इजाजत

‘अब मामला केवल शिवलिंग का नहीं, पूरे ज्ञानवापी का है’
पिछले कुछ समय से वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद सुर्खियों में है। अब लगता है कि ज्ञानवापी से जुड़ा ‘अज्ञान’ जल्द ही दूर होनेवाला है। पुरातत्व विभाग इस मामले में परिसर की खुदाई कर सकती है। असल में ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे परिसर का एएसआई सर्वे की मांग करते हुए याचिका गत मंगलवार को जिला जज की अदालत में दाखिल की गई है। जिला जज ने याचिका को स्वीकार करते हुए मुस्लिम पक्ष से तीन दिनों में आपत्ति भी मांग ली है। अब मुस्लिम पक्ष को आज १९ मई को इस पर आपत्ति दाखिल करनी है। इस पर अदालत अगली सुनवाई २२ मई को करेगा। यह संयोग है कि उसी दिन ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग के वैज्ञानिक सर्वे को लेकर भी जिला जज की अदालत में सुनवाई होनी है। हाईकोर्ट ने इसे लेकर १२ मई को आदेश दिया था। एएसआई उस दिन जिला जज की अदालत में पेश होकर शिवलिंग के सर्वे के तरीकों पर अपनी राय बताएगी।
ज्ञानवापी-शृंगार गौरी केस दाखिल करनेवाली महिलाओं ने ही सोमवार को जिला जज की अदालत में ज्ञानवापी के पूरे परिसर का एएसआई सर्वे कराने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की है। नई याचिका और इसकी जरूरत पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का कहना है कि अब मामला राममंदिर की तरह हल होना चाहिए। अब मामला केवल शिवलिंग का नहीं है। अब पूरे ज्ञानवापी का है। ज्ञानवापी, मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। इसका सबूत पिछले साल हुए कमिश्नर सर्वे में भी मिल चुका है। विष्णु जैन के अनुसार, आज भी मस्जिद के तीनों गुंबद मंदिर की दीवारों पर बने साफ दिखाई देते हैं। दीवारों पर बने ताखे, शंख, त्रिशूल आदि इस बात की पुष्टि करते हैं कि मंदिर को ही तोड़कर मस्जिद बनाया गया था।

याचिका हुई मंजूर
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन के अनुसार, अभी एएसआई सर्वे की मांग वाली याचिका मंजूर हुई है। जिस दिन एएसआई की रिपोर्ट आएगी सब कुछ साफ हो जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि परिसर के अंदर सील किए गए इलाके का सर्वे कैसे हो सकता है? तो इस सवाल पर उनका मत है कि सीलिंग का मतलब यह नहीं होता कि कोर्ट कोई ऑर्डर नहीं पास कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी तरह के डिसिजन लेने के लिए जिला जज की अदालत को अधिकार दे दिया है। हाईकोर्ट ने भी १२ मई के आदेश में जिला जज को कहा है कि वह किसी भी आवेदन पर सुनवाई के लिए स्वतंत्र है और कोई भी आदेश दे सकता है। पूरे परिसर के सर्वे की जरूरत पर उनका कहना है कि काशी में जितनी भी पौराणिक किताबें हैं, सभी में इस परिसर के बारे में लिखा है। विदेशों से आए पर्यटकों ने भी १६वीं शताब्दी में लिखी किताबों में यहां का वर्णन किया है। सभी किताबें बताती हैं कि यहां पर पहले क्या था और बाद में क्या हुआ है।

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