पूछकर तो देखो

दिल की बात पूछकर तो देखो
चीते क्यों मर रहे हैं
क्या कभी पूछा है उनसे
तुम पूछोगे भी क्यों
हम तो यह सोचकर ही खुश हैं
कि हमारे जंगल फिर आबाद हुए
विदेशी चीते लाकर
फिर भी हर तरफ सवाल है
हमारे मन में भी सवाल है
विपक्ष के भी सवाल हैं
सरकार के अपने जवाब हैं
तो कारिंदों के उनके अपने
कोई कहता है कि
यहां की जलवायु उनके अनुकूल नहीं है
किसी का कहना है कि खान-पान ठीक नहीं
कोई कहता है कि गले के बेल्ट घातक हैं
कोई कहता है कि उन्हें खुले में छोड़ना चाहिए
कोई कहता है कि उन्हें बाड़े में ही रहने दें
यह सब तो चीते भी सुन रहे हैं
सबकी चालबाजियां समझ भी रहे हैं
फिर भी वे गमगीन तो हैं ही
उनके दिल की बात किसने समझी है
न अपने देश ने, न उनके देश ने
भला कौन अपनी मिट्टी छोड़कर
खुश रह पाया है
खुशी-खुशी जी पाया है
कभी उनके दिल की बात पूछकर तो देखो।
डॉ. प्रदीप उपाध्याय, देवास

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