योगेश कुमार सोनी
बीते ५ जून को धारावाहिक ‘महाभारत’ में शकुनी का किरदार निभाने वाले गुफी पेंटल इस दुनिया को छोड़कर चले गए। कुछ दिनों पहले ‘सामना’ में उनका इंटरव्यू छपा था, जो मीडिया को दिया गया उनका अंतिम इंटरव्यू था, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कही थी। लेकिन उनकी एक बात ऐसी थी जिसे लोगों ने बेहद पसंद किया था। उन्होंने कहा था कि असल जिंदगी में शकुनी जैसे लोगों से बचें। चूंकि ऐसे लोग जिंदगी में जहर घोलकर केवल आपकी ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं। हमेशा उन लोगों से बचो जो मीठा बोलते हैं और आपकी हर बात में हां करते हैं। चूंकि ऐसे लोग चापलूस किस्म के होते हैं। इससे संबंधित एक हास्यास्पद घटना बताते हुए उन्होंने कहा था कि उस दौर में चिट्ठियां बहुत मिलती थीं। शकुनी का किरदार लंगड़ा था। अत: एक दिन किसी सज्जन ने मुझे धमकी भरी चिट्ठी लिखी और मुझे धमकाते हुए कहा, ‘ओए लंगड़े तूने कौरवों और पांडवों के बीच फूट डालकर उन्हें लड़वा दिया। जुआ भी करवाया और सबसे गंदा काम द्रौपदी का चीरहरण करवाया। और तो और भगवान श्रीकृष्ण की बात भी नहीं मानी और युद्ध करवा दिया। अगर तूने यह जल्दी नहीं बंद करवाया तो तेरी दूसरी टांग भी तोड़कर तुझे पूरा अपाहिज बना दूंगा। इसके विषय में जब मैंने सबको बताया तो उनकी हंसी रुकी नहीं। हम सब इतना हंसे कि जिंदगी में इतना आज तक कभी नहीं हंसे थे। इसके अलावा जब उनसे पूछा गया कि अब ऐसे धार्मिक कार्यक्रम नहीं बनते, जो दर्शकों को पसंद आए तो उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं है। लेकिन हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते कि रामानंद सागर और बी.आर. चोपड़ा जैसा तजुर्बा हर किसी के पास नहीं हो सकता है। आजकल पच्चीस-तीस साल का कोई भी प्रोड्यूसर ऐसी धार्मिक चीजों को सिर्फ एक नाटक के रूप में बनाता है। हमारे दौर में हर शॉट या सीन में इतना एहसास होता था कि जब तक दर्शक उसमें पूरी तरह से डूब न जाएं तब तक वो सीन पूरा नहीं माना जाता था। पहले एक सप्ताह में एक ही एपिसोड बनता था लेकिन अब इस हाईटेक दौर में हर डायरेक्टर व प्रोड्यूसर ने कई जगह काम पकड़ा होता है तो वह हर चीज में व्यवसाय ढूंढ़ता है, जिसकी वजह से ठहराव के साथ दर्शकों को एहसास में वो नहीं डुबो पाता। गुफी पेंटल ने असल जिंदगी में कई तरह के किरदार निभाए। उन्होंने बताया था कि अभिनेता बनना मेरा तीसरा अध्याय था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद मैं नौकरी करता था। उसमें मेरा मन नहीं लगा तो अपने जीवन के दूसरे अध्याय में मैं फौजी बना। फौज में भर्ती होने के लिए मैंने दो बार परीक्षा पास की और दूसरी बारी में मैंने आर्टिलरी रेजिमेंट ज्वॉइन की थी। यहां भी मन नहीं लगा तो मैं सिनेमा जगत की ओर चला गया। गुफी पेंटल जैसे महान कलाकार बेहद कम होते हैं वो हमेशा अपने दर्शकों व प्रशंसकों के दिलों में जिंदा रहेंगे!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)