एड. राजीव मिश्र
मुंबई
यहि दुनिया मा सबसे बड़ी कला उधारी मांगे के है। वइसे तो अदमी वक्त जरूरत पर ही उधारी मांगत है, पर कुछ लोग अइसनव होत हैं जेहिके उधारी से काम करय में अलगइ आनंद आवत है। लगभग हर गांव में एक दुइ लोग उधारी मांगय मा माहिर होत हैं। उनके पास एक से बढ़िके एक बहानव होत है। अउर तो अउर उधारी मांगय के समय पता नहीं कहां से अस उदासी अउर मजबूरी लपेटत हैं कि भइया पाथर भी मोम होइके टेहकि जाय। अब अईसने गांव के एक धुरंधर उधारीखोर मनई अपने मित्र किहां पहुंचे, पहुंचतय खटिया पे अइसन पसरे कि मित्र के करेजा मुंह के आइ गवा। का भवा भइया चुनमुन? अरे कुच्छउ न पूछो बनवारी, कुछ समझि नही परत है कि का अउर कैइसे करी। पर भवा का कुछ बतइहौ तबै ओहि समस्या के निदान होइ न। का बताई भइया, कल हमरे बड़कना के स्कूल में नाम लिखावे के है अउर हमरा चेक पास नहीं भवा उही टेंशन के टिटवाला हुइ गवा है। तो भइया चेक कब डारो है बैंक मा? चेक तो चार दिन पहिले डारा है भइया, पर बैंक वाला बाबू कुछ बतावे के तैयार नहीं है अब समझ में नही आवत है का करी। देख लेव का पता आज पास होइ जाय। अरे भइया बनवारी अगर आज नहीं पास भवा तो हमरे लड़िका के जिनगी खराब होइ जाई। हम का कहत हैं बनवारी! तुम हमका अबहीं ५ हजार रुपिया देइ देव, जइसय हमरा चेक पास होइ पइसा वापिस कइ देब। अइसा है चुनमुन थोड़ा देर पहिले आय होते तो हम ५ नहीं ५० हजार देइ देइत पर तोहरे आवय के पहिले ट्रैक्टर के क़िस्त जमा करे बदे भेज दिहिन। अरे बनवारी सुबह आठ बजे कवन बैंक किस्त जमा करत है भइया? जवन बैंक मा तुम्हरा चार दिन से चेक नहीं पास भवा है उहै बैंक सुबह आठ बजे किस्त जमा करत है। कुच्छउ न होइ पाई का? देखो हजार-पांच सौ कही परा होय जेब मा? नहीं है भइया सच्ची कहत हैं जहर खाये भर के पइसा नही है। अइसा करो बनवारी! हमरी जेब मा पचास रुपिया है चाहो तो जहर मंगाय लेव? बनवारी खटिया के पास रखी लाठी की ओर गुस्से से जइसे देखें चुनमुन चुप्पय उठिके चौपाल की ओर निकरि परे।