एड. राजीव मिश्र मुंबई
जब से चुनाव के घोषणा भई है गाँव मा हर तिसरा मनई चुनाव के घनघोर विश्लेषक हुइ गवा है। सुबह से शाम खेत-खलिहान, बाग-बगइचा, शहर-बजार से लइके गाँव के चौपाल में मानो बवंडर मचि गवा हो। शाम पाँच बजे से गाँव के चौपाल पर नोखई, रामपलट, दमोदर और जोखन के चंडाल चौकड़ी जमि जात है। एक एक कइके गाँव के लोग आवत हैं अउर ई राजनीतिक विश्लेषकन से गियान लइके जात हैं अउर चुनाव मा हार-जीत के गणित फिट करत हैं। जब से आचार संहिता लागू भई है चारउ विश्लेषकन के साथ गाँव के माहौल गरम हुइ गवा है। जइसे सुरुज डूबा है चौपाल पर गाँव के सब नेतन के भीड़ जमा होवय शुरू हुइ गवा। एक लोग नोखई से पूछे का दद्दा का लागत है यह बेरी ४०० पार होइ जाइ का? नोखई बहुतै गंभीर चेहरा बनाई के बोले अइसन है देश मा महंगाई बहुत बढ़ि गई है, बेरोजगारी अलगइ फन पैâलाये खड़ी है ऐसे में अगर विपक्षी पार्टी कउनउ खेला किहिस तो सब गड़बड़ हुइ जाई। हम तो सुने है कउनउ गठजोड़ भवा है जेहिके भरोसे चुनाव के नदी पार करै के सोचि रहें हैं। तब तक दाढ़ी खजुवावत रामपलट बोलि परे- अरे छोड़ो, सब गुंडा-बदमाश भरि लेत हैं चुनाव जीतय खातिर। तब तक जोखन कूदि परे, जियादा गियान न बघारो यहि दुनिया मा केहू हरिशचंदर नही है। सब लोग यहि तालाब में एक्कय रंग के कपड़ा पहिन के कूदे हैं। तब तक दमोदर गमझा फटकारत बोले, अब तो अंदोलन ही यहि देश का बचाय पाई। तो करो अंदोलन के रोका है? तू रोक लेइहौ हमें? अइसा है अपने कमीज में रहो, नही तो अबहियय कुल नेतागिरी निकरि जाई। एतना सुनतै जोखन दमोदर के गमझा सहित खटिया से नीचे खींच लिहे अउर शुरू भवा दंगल। दस मिनिट के बाद दुनहुँ जन के कुरता-पैजामा फटि के तार-तार होइ गवा। अब ओहि दिन से गाँव के चौपाल के चुनावी बुखार पूरी तरह से उतरि गवा है।