एड. राजीव मिश्र
मुंबई
जब से फागुन चढ़ा है बटेसर के सर पे ससुरारी मा होरी खेलय के नशा चढ़ि गवा है। रोज एक बेर मेहरिया के याद कराय देत हैं कि यहि बरिस होरी खेलब तो सढ़ुआईन अउर सरहज के साथ मा खेलब नाही तो होरी नही खेलब। बटेसर के मेहरिया बसंती समझाय के हारि गई पर बटेसर अइसन बउरान हैं कि पूछौ मत। पूरे गाँव मा अपनी ओर से ई खबर फइलाय दीहें हैं कि हमरे ससुरारी से न्योता आवा है कि जीजाजी अबकी होरी हम सढ़ुआईन अउर सरहज के साथ खेलो। जवन जवान अउर कुवाँर रहें उ बटेसर के लल्लो-चप्पो मा लाग गए अउर जवन बूढ़ पुरनिया रहे उ जरि के कोइला होइ गए कि जिनगी बीत गई पर कबहुँ ससुरारी से न्योता नही आवा। बटेसर के तीनों बहिन भउजाई से नाराज हैं सो अलग। चौथी फुलवा अपने ससुराल में है सो बसंती के जान ओहिके ताना से बचा है। होरी से तीन रोज पहिले बटेसर शहर से अबीर, गुलाल अउर पक्का रंग के साथ चकाचक सुफेद रंग के कुरता-पैजामा लेई के आइ गए। गजोधर के ई-रिक्शा के बयाना भी होइ गवा। फिरतू राम के पाँच किलो पपड़ी के साथ गुरुजी के ठंडाई के भी बंदोबस्त हुइ गवा, बस अब होरी के दिन आय जाय जल्दी से। आखिर होरी के दिन आई गवा, सुबहिये बटेसर कुरता-पैजामा डटाय के मेहरिया के साथ ससुरारी निकरि परे। पहुँचतय हाल-चाल के साथ पनिपियाव के बाद एक घंटा बीति गवा पर अबहीं तक बटेसर के सढ़ुआईन अउर सरहज के दर्शन नही भवा। बहुत देर के बाद सास घर से बाहर निकरि तो बटेसर पुछि परे, अम्मा! घर में चहल-पहल नही लग रही है। का बताई पाहुन, कालि तोहरे साढ़ू आवा रहे अउर आपन तीनो सढ़ुआईन के साथ तोहरी दूनौ सरहज के भी अपने घर लेइ गए। एतना सुनतय बटेसर के ऊपर मानो बज्जर गिरि पड़ा होय तब तक बटेसर के दूनौ सार गाँव के लौंडन के साथ आय के बटेसर के उ दुर्गति किहेन बटेसर के सपना के साथ उनकर कुरता-पैजामा भी शहीद हुइ गवा। बिना मेहरिया के घर पहुँचे तो देखत हैं कि उनकर परेम जीजा उनके तीनो बहिन के साथ होरी खेल रहें हैं अउर बचा-खुचा बटेसर के कुरता उनके जीजाजी फारि के चिल्लाय परे, ‘होरी है भई होरी है।’