एड. राजीव मिश्र मुंबई
रामबरन खिचड़ी के एक हफ्ता पहिले से ही बजार से रिकीम-रिकीम के पतंग अउर मांझा लइके आइ गयें हैं। वइसे रामबरन अपने गाँव के सबसे धुरंधर पतंगबाज हैं। आज तक अगल-बगल के दस गाँव मा केउ न उनके पतंग के काटय के छोड़व नजदीक तक नही आइ पावा। यहि बरिस रामबरन के पड़ोस में रामचरन के घर पे उनकर सढ़ुआईन खिचड़ी लइके अपने भैया के साथ आई है। रामचरन के साला तो चले गए पर सढ़ुआईन होली तक के लिए रूकि गई। पूरा गाँव रामचरन के सढ़ुआईन चंदा के खूबसूरती के दीवाना होइ गवा है, पर रामचरन हैं कि चंदा के घर से बाहरय नही निकरे देत हैं। जब से चंदा आयी है घर के छत पर रामबरन के निगाह चंदा के साथ दुइ बार चार होइ चुकी है। एक बार तो चंदा रामबरन के देखि के मुस्कियाय भी चुकी है। अब रामबरन चंदा के मुस्कान के पता नही का मतलब निकारे हैं कि बइठे हैं कि ओहि दिन से बाल में चमेली के तेल, मुँह पे क्रीम-पावडर पोति के तैयार हैं। बहोरन रामबरन के समझाए, ‘का चुप साधि रहा बलवाना’ अरे तू पहिला मनई हौ जेहिका देखिके चंदा मुस्कियात है भैया। तू चाहो तो चंदा सुरुज के गोद में आइ जाई। हम सब अपने किस्मत पे रोइ तो रोइ, तुम्हरे हाथ में तो भगवान कलाकारी दिए हैं। हम समझे नही बहोरन! अरे भैया, अब रामचरन तो अपने सढ़ुआईन के बहिरे निकरय नही देत हैं तो उ तुमका कहाँ देखिके मुस्की मारिस? छत पे? बरोबर, अब तुम तो छत पर जाइ नही पइहौ, पर तुम्हारी पतंगबाजी कहिया काम आयी। जवन काम पूरा गाँव मिलिके नही कइ सकत है उ काम तुम्हरी पतंग कइ देई। पतंग पर दिल के हाल लिखो अउर उतार देव चंदा के छत पे, अब तुम्है देखिके जो अबै तक मुस्कियात रही उहै तुम्हरे अकवारी में आइ जाई। बहोरन के बात सुनिके रामबरन एक पतंग जेहिपे दिल बना रहा, ओहिपे ‘आई लभ यू’ लिखी के रामचरन के छत पे उतारि दिए। अब रामबरन के किस्मत फूटी रही तो चंदा के जगह रामबरन बौ उ पतंग पाई गई। उ पतंग लइके रामचरन के पास, अउर रामचरन लाठी के पास, ओहिके बाद रामबरन के अइसन कुटाई भई अइसन कुटाई भई कि तबसे लइके आज तक रामबरन न पतंग उड़ाए न चकरी पकड़ें।