मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : मजदूर-दिवस

अवधी व्यंग्य : मजदूर-दिवस

एड. राजीव मिश्र मुंबई

फेरन तीन दिन से चौराहा पर जाइ जाइ लौटि आवत है पर कउनउ काम के जुगाड़ नही बइठा। घर मा अन्न के एक दाना नही बचा है। भूख से पेट कचोटत है पर मजूरी के कउनउ ठौर ठिकाना नही दिखात है। पिछले दस दिन से नेता सेवकराम के चुनाव में बैनर पोस्टर लगावइ के काम तो मिला पर नेताजी के पास से मंजूरी अबहीं तक नही मिली। आज फेरन जब नेताजी के दुआरे पहुँचे आपन मजूरी लेवय बिना पहुँचे तो उहाँ मजमा लगा रहा, नाश्ता के डिब्बा बटि रहा है, फेरन के देखतै एक कार्यकर्ता नाश्ता के एक डिब्बा देइके बोला, बहुत सही समय पे आये हौ फेरन, आज नेताजी के रैली के बाद जनसभा है जल्दी से नाश्ता करो अउर ई गमछा लपेटि के तैयार होइ जाओ, आज मजदूर दिवस है। आज तोहरी मजूरी भी मिली और आज तोहरा सम्मान भी होइ। फेरन आखिर करय तो का करय, काम तो ओयसय नाय मिला ई सोच के तुरंतय नाश्ता कइ के चलि परे। पूरा रस्ता नारा लगावत-लगावत फेरन के गला सूखि गवा। रस्ता में एक जगह नल दिखी तो दौरि परे, दुइ हैंडिल मारिके गला तर कइके फिर से नारा लगावय शुरू कय दिहेन। रैली खतम भई तो सभा शुरू भई, एक के बाद एक नेता गरीबी अउर बेरोजगारी पे लंबा-लंबा भाषण ढकेल के जब बैठि गए तब नेता सेवकराम के नंबर आवा। गला खखार के बोलय शुरू किहेन अउर अइसन लच्छेदार भाषण दिहिन कि फेरन के लगा कि यहि देवता मनई के बारे में हम का सोचत रहें। भाषण के आखिरी मा, नेताजी बोलें, आप सभय के पता नही होइ कि हमरे बाबू मजदूरी किहें, हम मजदूरी किहें, यहि लिए हम आप सभी मजदूरों का दर्द समझता हूँ अउर आज यहि मजदूर दिवस पर एक मजदूर के सम्मान भी करब। कहिके फेरन के मंच पर बुलाय के एक ठो गमछा अउर एक ठो नारियल पकड़ाई के नेता जी सम्मान कईके जइसय आपन भाषण खतम किहिन नारा, से पूरा इलाका गूँजी उठा, अउर फेरन एक ठो गमछा अउर नारियल लइके जो घर गयें आज तक मजूरी नहीं पाएं। वहि दिन के बाद से दिवार पर लिखा नारा आज तक फेरन के मुँह बिरावत है।

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