मुख्यपृष्ठनए समाचारअवधी व्यंग्य: प्रेम पत्र

अवधी व्यंग्य: प्रेम पत्र

एड. राजीव मिश्र मुंबई

जब से बटेसर के सढ़ुआइन बसंती गाँव मा आई है गाँव से सब जवानन के करेजा में प्रेम के बरगद हिलोर मारि रहा है। जेहिके देखो मुड़े मा गमकउआ तेल डाले घुमि रहा है। कल प्रेमलाल जब से बसंतिया के देखि के आयें हैं मानो उनके करेजा पर साँप लोटि रहा है। सुनै में आवा है कि बसंतिया बीए पास भी है। अब समस्या ई है कि प्रेमलाल दसवीं से आगे बढ़ि नही पाए तो बसंतिया के दिल मा जगह वैâइसे बनी। आखिर मा केहू बताईस के प्रेमलाल प्रेम के लिए पढ़ाई के कउनउ जरूरत नही है, बस लभ लेटर लिखै जानत हौ तो कूदि परो यहि समुंदर मा। आखिर मा ई लभ-गुरु के गोड़ धइ के कही से फूल-पत्ती वाला कागज ढूढ़ के बईठ गए लभ लेटर लिखय। पहिले तो लेटर के चारिउ ओर पान के लाल पत्ता में तीर मारिके डिजाइन बनाये फिर ‘लिखता हूँ खत खून से स्याही न समझना/मरता हूँ तेरी याद में जिंदा न समझना’, जइसन अखंड लभ शायरी से लेटर के शुरुआत भई, बसंतिया के सुंदरता के बवंडर बनाये के बाद प्रेमलाल अपने दिल के हाल लिखे अउर अंत मा, ‘चाँदनी रात है नदी का किनारा है, ई कागज का टुकड़ा नही दिल हमारा है’ शायरी के साथ, आई लभ यू बसंती लिखि के लेटर चिपकाय के बटेसर के छोटकुना के दुइ ठो किसमी देइ के लेटर पकड़ाइ के बोले, लेइ जाओ अपनी मौसी के देइ आओ। अब छुटकुना उ लभ-लेटर मौसी के देवय के जगहा अपने माई के देइ दिहिस। प्रेमलाल के छुटकुना से मैसेज मिला कि शाम मा बसंतिया बगइचा में बोलाइस है। प्रेमलाल शाम के महकउआ साबुन लगाय के जब प्रेम के कुंजगली में पहुँचे तो उहाँ बटेसर, बटेसर बो और उनकर सढ़ुआइन तीनउ जन मिलि के प्रेमलाल के अइसन खातिरदारी किहिन कि आज तक परेम के नाम पर प्रेमलाल के मिर्गी आइ जात है।

अन्य समाचार