एड. राजीव मिश्र मुंबई
जब से गाँव मा भेड़िया के खबर पैâली है तब से सिवान से लइके चौपाल तक अइसन सन्नाटा पसरा है मानो अबहिये कउनउ ओर से भेड़िया आई अउर मनई के उठाय लेइ जाई। घर-घर में अब लाठी के इज्जति बढ़ि गई है। कुछेक घर मा दुइ पुस्त पहिले के जंग लगा भाला निकारि के पथरे पर टेइ जात अहइ। गाँव-जवार के बूढ़-पुरनिया के अलगय कहानी चलि रही है… भइया अब कलजुग आई गवा है। इहै तरीके से यहि सृष्टि के बिनास होइ… अरे सुमेर, याद करो बीस बरिस पहिले जब लकड़बग्घा आवा रहा, तब तो हमरउ जवानी रही। याद है न वैâइसे भड़भड़वा के नारे में एक लकड़बग्घा उठाई के पटकि दिया रहा। सुमेर कुछ बोलय ओहिके पहिले गोबरधन बोलि परे, पर हम तो सुने रहे तू ऊहाँ आपन धोती छोड़ि के भागि आवा रह्यौ। तब तक सुमेर आपन मौन खोलेन, अरे उ छोड़ो पदारथ, मुँहनोचवा याद है न कइसे हम अपने छत पे ओहिके छाती पर गोड़ धईके एक तल्ला नीचे कूदि गए रहें, याद है कक्का कइसे तू बिलार देखि के सोझवय छत पर से कूदि गए रह्यौ। कुच्छउ कहो, पर आज कलि के जवानन मा उ बात नही रही, बाहेर रहिहैं तो मोहबाईल मा घुसा रहिहैं अउर अंदर जइहैं तो मेहरी के घर मा घुसि जइहैं। का होइ यहि देश के कुछ समझ में नही आवत है। तब तक सुमेर के छोटकना खटिया पर बइठे-बइठे बोलि परा, अइसा है बुजरुग पाल्टी, जियादा बात के बहराइच न करो जौ हिम्मत है तो लेव हाथ मा लाठी अउर चलो सिवान मा नाही तो बेफालतू के गलचउरा न करो। जवानी मा हरियर दूब तो उपारि नही सके अउर इहाँ बईठ के क्रांतिकारी बनि रहे हैं। अउर का कहत रह्यौ? हम मेहरिया के घर मा घुसा रहति हँय? अरे दद्दा ई तो चार गोड़ वाला नरभक्षी जनावर है जवन मरद अउर जनाना में भेद नही करत है, बाकी बंगलौर से बदलापुर अउर कलकत्ते से कन्नौज तक समाज में यतना भेड़िया घूमि रहे हैं कि बहिन-बिटिया के जान बचाऊब भारी पड़ि गवा है। अरे ई तो पहिचान में आई जाई अउर आज नही तो कल पकड़ा जाई पर दुइ गोड़ वाले भेड़िया भारत में कब पकड़ा जाई? लड़िका के बात के पुरनियन के पास न कल कउनउ जबाब रहा न आज कउनउ जबाब है।