मुख्यपृष्ठसमाचारअवधी व्यंग्य : मेड़ छँटाई

अवधी व्यंग्य : मेड़ छँटाई

एड. राजीव मिश्र
मुंबई

गाँव-जवार में जेतनी उपज पूरे खेत मा नाही होत है, ओहि से ज्यादा उपज मेड़ मा होत है। जेहिके देखा हर साल फरुहा से पहिले मेड़ चिकनाई, ओकरे बाद ओहिके घास निकारी फिर सीधा करी अउर सीधा करत-करत एक दिन उ मेड़ एक पातर छीर भरि रहि जात है।
खैर, गाँव में आधा से जियादा रार और झगरा आम, मछरी अउर मेड़ छाँटय का लय के होत है। मेड़ छँटाई भी एक कला हय, जवन सबके नही आवत है। गाँव मा कुछ लोग यहि काम के एक्सपर्ट होत हैं अउर ई कला उ अपने सबसे प्रिय अउर खुराफाती लड़िका के सिखाय के सुरधाम जात हैं। मेड़ छँटाई के पहिला दाँव है खुरपा से मेड़ के घास छीलब। घास छीलत की ई धियान रहे कि खुरपा थोड़ी-थोड़ी दूर पे घास के साथ मेड़ के माटी भी झारि देय अउर माटी झारत की धियान रहे कि मेड़ सीधी लाठी से चलत कीरा की तरह होइ जाय। ई भवा पहिले बरिस के दाँव।
दूसरे बरिस जब ट्रैक्टर वाला खेत जोतय आवै तो ड्राइवर से कहो, ‘भैया तनी मेड़वउ झारि दिहो।’ जब ट्रैक्टर वाला खेत जोति के जाय तो फरुहा लइके मेड़ के सीधा करो अउर ई क्रिया तब तक करो जब तक दस कड़ी के चकरोट दुइ कड़ी के न रहि जाय। डरायो तनिकउ नही। होइहै कछु नही। अरे, जब नाला के बगल मा सटाई के जमीन खोदि के कोचिंग चलि सकत है तो तू तो जमीन के ऊपर खोदत हौ।

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