मुख्यपृष्ठनए समाचारअवधी व्यंग्य: जीत के मिठाई

अवधी व्यंग्य: जीत के मिठाई

एड. राजीव मिश्र मुंबई

जब से चुनाव के परिणाम आवा है पूरे जिला के हलुआईन के चाँदी होय गवा है। जेहिके देखो मन के मोतीचूर हुआ जाई रहा है। गाँव जवार मा तो पूछौ मत, जेतने खलिहर अउर नकारा लोग हैं सब के सब चुनाव के बाद फर्जी विश्लेषण में लगे बइठे हैं। हम तो पहिलय से कहि रहे हैं कि ई जवन टिकट के बटवारा भवा है उ बरोबर नही है। मतलब अगर यहि सीट पर फलाना के अउर वहि सीट पर ढेमका के टिकट मिला होत तो आज ई पार्टी के ई हाल न भवा होता। तो भैया तुम तो वही पाल्टी में हो न तो का तुम्हारी चली नही का? बौड़मय हौ का? हम वहि पाल्टी मा हैं जरूर पर सर पे जितावय के जिम्मेदारी केहू अउर पाल्टी के लिए रहें। ई वैâइसन पाल्टीगीरी है भइया? इहै तो असली राजनीति है जो तुम्हरा लोग के समझ में नही आवत है। नही समझ में आवत है तो सुनो, अब बीस साल से पाल्टी के सेवा करत-करत पनही खियाय गई। अउर पाल्टी चुनाव के समय दल बदलुअन के टिकट देइ देइ तो हम पाल्टी के लइके चाटी का? जब पाल्टी हमरी राजनीति खतम कइ दिहिस तो हमहूँ पाल्टी के खतम कइ देबय। अब अगली पाल्टी पइसा के पइसा दिहिस अउर जीतय के बाद ठीकेदारी भी मिली। भईया अइसा है जब राजनीति मा मुठिया न मिले तो रुपिया थाम लेव, नाही तो घरव के उर्दी झेंगरा में डारि देइहौ। सामने बइठे सब लोग भउचकियाय गए ई राजनीति के असल खेला समझि के। तब तक जीतय वाली पाल्टी पहुँचि के नेताजी के गले लगाय के पाँच किलो मोतीचूर के लड्डू के डब्बा रखिके डब्बा में से एक लड्डू निकाल के नेता जी के मुँह मा भकोसि दिहिन। ओहिके बाद जीत के मिठाई सब लोगन में बँटय लाग।

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